Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ १३१

भाई! आत्मा सदा सच्चिदानंदस्वरूप भगवान छे. स्वभावथी ते सदा परमात्मस्वरूपे-भगवानस्वरूपे ज छे. आवा स्वभावनी अपेक्षाए त्यां गाथा ७२ मां एने ‘भगवान’ कहीने बोलाव्यो छे. त्यारे अहीं पोते पर्यायमां-रागद्वेष, पुण्यपापना भाव अने तेना फळमां-उन्मत्त-पागल थईने वर्ततो थको ते नित्यानंदस्वभावने जोतो नथी तेथी ‘अंध’ कहीने संबोध्यो छे. बन्ने वखते स्वरूपमां ज द्रष्टि कराववानुं प्रयोजन छे. समजाणुं कांई...?

कहे छे-अनादि संसारथी रागी प्राणी पर्यायमां ज मत्त वर्ततो थको जे पदमां सूतो छे ते पद अपद छे, अपद छे; मतलब के ते पद तारुं स्वपद नथी. बापु! आ शरीर, इन्द्रिय, धन-संपत्ति, महेल-मकान, स्त्री-परिवार इत्यादिमां मत्त-मोहित थई तुं सूतो छे पण ए बधां अपद छे, अपद छे. आ रूपाळुं शरीर देखाय छे ने? भाई! ते एकवार अग्निमां सळगशे, शरीरमांथी हळहळ अग्नि नीकळशे अने तेनी राख थई फू थई जशे. प्रभु! ए तारी चीज कयां छे? ए तो अपद छे. आ पुण्यना भाव अने तेना फळमां प्राप्त देवपद, राजपद, शेठपद इत्यादिमां तुं मूर्च्छित थई पडयो छे पण ए बधां अपद छे अर्थात् ते तारां चैतन्यनां अविनाशी पद नथी. अंदर भगवान चैतन्यदेव प्रभु आत्मा एक ज तारुं अविनाशी पद छे.

भाई! तुं देहनी, इन्द्रियोनी, वाणीनी अने बाह्य पदार्थोनी रातदिवस संभाळ कर्या करे छे, सजावट कर्या करे छे; पण ए तो अपद छे ने प्रभु! ते अपदमां कयां शरण छे? नाशवंत चीजनुं शरण शुं? भगवान! ए क्षणविनाशी चीजो तारां रहेवानां अने बेसवानां स्थान नथी; ते अपद छे अपद छे एम ‘विबुध्यध्वम्’ समजो. अहीं ‘अपद’ शब्द बे वार कहेवाथी करुणाभाव सूचित थाय छे. अहा! संतोनी शुं करुणा छे! कहे छे- भगवान! पोताना भगवानस्वरूपने भूलीने हुं देव छुं, हुं राजा छुं, हुं पुण्यवंत छुं, हुं धनवंत छुं इत्यादि नाशवंत चीजमां केम अहंबुद्धि धारे छे? तने शुं थयुं छे प्रभु! के आ अपदमां तने प्रीति अने प्रेम छे? भाई! त्यां रहेवानुं अने बेसवानुं तारुं स्थान नथी.

जेम दारू पीने कोई राजा उकरडे जईने सूतो होय तेने बीजो सुज्ञ पुरुष आवीने कहे के-अरे राजन्! शुं करो छो आ? कयां छो तमे? तमारुं स्थान तो सोनानुं सिंहासन छे. तेम मोहरूपी दारू पीने उन्मत्त थयेलो अज्ञानी जीव पोताना शुद्ध सच्चिदानंद भगवानने भूलीने अस्थानमां-स्त्री-पुत्र-परिवार, धन-संपत्ति, शरीर आदिमां जईने सूतो छे. तेने आचार्यदेव सावधान-जाग्रत करीने कहे छे-अरे भाई! तुं ज्यां सूतो छे ए तो अस्थान छे, अस्थान छे; ‘इत = एत एत’ आ तरफ आवो, आ तरफ आवो. छे? बे वार कह्युं छे के-आ तरफ आवो, आ तरफ आवो. अहो! आचार्यनी असीम (वीतरागी) करुणा छे. अपद छे, अपद छे-एम बे वार