Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१३२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ कह्युं अने अहींयां आवो अहींयां आवो-एम पण बे वार कह्युं! मतलब के अहींयां अंदर आत्मा पूर्णानंदनो नाथ प्रभु रागरहित शुद्ध चैतन्यस्वरूपे जे विराजी रह्यो छे ते तारुं अविनाशी ध्रुवधाम छे; माटे अन्य सर्वनुं लक्ष छोडीने तेमां आवी जा. अहा... हा... हा...! शुं करुणा छे! (पोते जे निराकुल आनंदनो स्वाद चाख्यो छे ते आखुं जगत चाखो-एम आचार्यदेवने अंतरमां करुणानो भाव थयो छे).

कहे छे-आ तरफ आवो, आ तरफ आवो; अहींयां निवास करो. मात्र वास करो- एम नहि, पण निवास करो-एम कहे छे. वास-वसवुं-ए तो सामान्य छे. पण आ तो ‘निवास’-विशेष कथन छे. मतलब के अहीं स्वरूपमां एवा रहो के त्यांथी फरीथी नीकळवुं न पडे. अंदर चैतन्यमूर्ति प्रभु आत्मा छे एमां आवीने स्थिर थई जाओ एम कहे छे. अहो! अद्भुत कळश ने अद्भुत शैली! आचार्य अमृतचंद्र-चालता सिद्ध-सौने सिद्धपद माटे आह्वान आपे छे!

कहे छे-आ तरफ आवो, आ तरफ आवो, अहीं निवास करो. केम? तो कहे छे- ‘पदमिदमिदम्’-तमारुं पद आ छे-आ छे. त्रण वात कही-

१. पुण्य-पाप अने तेनां फळ सघळां अपद छे, अपद छे. २. आ तरफ आवो, आ तरफ आवो; अहीं निवास करो. ३. तमारुं पद आ छे-आ छे. अहा... हा... हा...! शुं कळश मूकयो छे! भगवानने अंदर भाळ्‌यो छे ने बापु! आचार्यदेवे गजब द्रढताथी घोषणा करी छे के-शरीर, मन, वाणी, धन-संपत्ति, शेठपद, राजपद के देवपद इत्यादि बधुंय अपद छे, अपद छे. तारुं पद तो भगवान! चैतन्यमूर्ति प्रभु आत्मा छे; तेमां निवास कर. आ छे-आ छे-एम कहीने कहे छे-अमे एमां वसीए छीए ने तुं एमां वस.

कहे छे-तमारुं पद आ छे-आ छे ‘यत्र’ ज्यां ‘शुद्धः शुद्धः चैतन्यधातुः’ शुद्ध-शुद्ध चैतन्यधातु ‘स्वरस–भरतः’ निज रसनी अतिशयताने लीधे ‘स्थायिभावत्वम् एति’ स्थायीभावपणाने प्राप्त छे अर्थात् स्थिर छे-अविनाशी छे.

जुओ, ज्यां शुद्ध-शुद्ध चैतन्यधातु छे ते तारुं स्वपद छे. अहीं शुद्ध-शुद्ध एम बे वार कह्युं छे; मतलब के द्रव्य शुद्ध अने पर्याय पण शुद्ध छे अथवा द्रव्ये ने गुणे शुद्ध छे. जो पर्याय लईए तो त्रिकाळी कारण शुद्ध-पर्याये शुद्ध छे एम अर्थ छे. बाकी तो द्रव्य शुद्ध छे अने गुणेय शुद्ध छे-आवी चैतन्यधातु छे. अहाहा...! जेणे मात्र चैतन्यपणुं धारी राख्युं छे अने जेणे राग ने पुण्य-पापने धारी राख्या नथी ते चैतन्यधातु छे. अतीन्द्रिय आनंदनो नाथ भगवान आत्मा अंदर चैतन्यधातु छे