१३४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७
कहे छे-भगवान आत्मा अंदर स्थायीभाव-स्थिर नित्य छे. आवुं त्रिकाळी ध्रुवधाम प्रभु आत्मा तारुं निजपद छे. कहे छे-सर्व अपदथी छूटी अहीं निजपदमां आवी जा; तेथी तुं जन्म-मरणथी रहित थई जईश. जेम पूरणपोळी घीना रसमां तरबोळ होय छे तेम भगवान आत्मा चिदानंदरसथी तरबोळ भर्यो पडयो छे. तेमां द्रष्टि करी अंदर निवास कर; तेथी तारी पर्यायमां पण आनंदरस टपकशे. भाई! आ चैतन्यपद छे ते तारुं ध्रुवपद छे. तेने भूलीने तुं अपदमां कयां सूतो छे प्रभु? जाग नाथ! जाग; अने आवी जा आ ध्रुवपदमां; तने मोक्षपद थशे.
विशेष खुलासो करे छे के-‘शुद्ध-शुद्ध’-एम शुद्ध शब्द बे वार कह्यो छे ते द्रव्य अने भाव-बन्नेनी शुद्धताने सूचवे छे; अर्थात् द्रव्य शुद्ध छे अने भाव पण शुद्ध छे. जुओ, भाववान द्रव्य तो शुद्ध छे, भाववाननो भाव पण शुद्ध छे. आ भाव एटले पुण्य-पापना भाव एम नहि, ए तो अशुद्ध, मलिन ने दुःखरूप छे. भाववान भगवान आत्मानो भाव तो शुद्ध ज्ञान, आनंद आदि छे अने ते तारी चीज छे, स्थायीभावने प्राप्त छे अर्थात् अनादि-अनंत स्थिररूप छे; एमां हल-चल छे नहि. अहा! प्रभु! आवुं तारुं ध्रुवधाम छे ने! माटे परधामने छोडी स्वधाममां-ध्रुवधाममां आवी जा.
हवे द्रव्य-भावनो खुलासो करे छे. समस्त अन्यद्रव्योथी भिन्न होवाने कारणे आत्मा द्रव्ये शुद्ध छे अने परना निमित्तथी थवावाळा पोताना भावोथी रहित होवाने लीधे भावे शुद्ध छे. जुओ, पुण्य-पापना भाव पर्यायमां थाय छे माटे ‘पोताना भावो’ कह्या छे, पण ते ज्ञानादिनी जेम पोताना भावो छे नहि. आवुं! हवे कोई दि वांचन- श्रवण-मनन मळे नहि ने एम ने एम धंधा-वेपारमां अने स्त्री-पुत्र-परिवारमां मश्गुल-मत्त रहे छे पण भाई! ए तो तुं पागल छो एम अहीं कहे छे. प्रभु! तुं कयां छो? ने कयां जा’ छो? तारी तने खबर नथी! पण भाई! जेम वेश्याने घरे जाय ते व्यभिचारी छे तेम रागमां अने परमां जाय ते व्यभिचारी छे. भाई! जे पोतानी चीज नथी तेने पोतानी मानवी ते व्यभिचार छे. समजाणुं कांई...?
जुओ, देवे द्वारिका नगरी श्रीकृष्ण माटे रची हती. अहा! जेने सोनाना गढ अने रतनना कांगरा-एवी ते मनोहर नगरी ज्यारे भडके बळवा लागी त्यारे लाखो-करोडो प्रजा तेमां भस्म थई गई पण कोई तेने बचाववा न आव्युं. ते समये श्रीकृष्ण ने बळदेव पोताना माता-पिताने रथमां बेसाडीने बहार काढवा लाग्या त्यारे उपरथी गेबी अवाज आव्यो के-माबापने छोडी दो, तमारा बे सिवाय कोई नहि बचे, मा-बाप नहि बचे. अहा! जेनी हजारो देवता सेवा करता होय ते श्रीकृष्ण अने बळदेव मा-बापने भस्मीभूत थता जोई रह्या पण तेमने बचावी शकया नहि; मात्र विलाप करता ज रही गया. अरे भाई! नाशवान चीजने तेना नाशना काळे