समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ १३प कोण राखी शके? देहने जे समये छूटवानो काळ होय ते समये तेने कोण राखी शके? बापु! जगतमां कोई शरण नथी हों. जुओने! अंदर राणीओ चित्कार करी पोकारे के-हे श्रीकृष्ण! अमने काढो, अमने काढो! पण कोण काढे? बापु! त्रण खंडना स्वामी श्रीकृष्ण ए बधुं जोता रही गया.
श्रीकृष्ण बळदेवने-मोटाभाईने पोकार करे छे के-‘भाई! हवे आपणे कयां जईशुं? आ द्वारिका तो खाख थई गई छे, ने पांडवोने तो आपणे देशनिकाल कर्या छे. हवे आपणे कयां जईशुं? त्यारे बळदेव कहे छे-आपणे पांडवो पासे जईशुं; भले आपणे तेमने देशनिकाल कर्या, पण तेओ सज्जन छे. अहा! समय तो जुओ! जेनी देवताओ सेवा करे ते वासुदेव पोकार करे छे के-आपणे कयां जईशुं? गजब वात छे ने!
हवे ते बन्ने कौसंबी वनमां पहोंच्या. त्यारे थाकेला श्रीकृष्णे कह्युं-‘भाई हवे एक डगलुंय आगळ नहि चाली शकुं.’ जुओ आ श्रीकृष्ण पोकारे छे! त्यारे बळभद्रे कह्युं- ‘तमे अहीं रहो, हुं पाणी भरी लावुं.’ पण पाणी लावे शामां? बळभद्रे पांदडांमां सळी नाखीने लोटा जेवुं बनाव्युं-अने पाणी लेवा गया. हवे शुं बन्युं? ए ज के जे भगवाननी दिव्यध्वनिमां आव्युं हतुं. भगवाननी वाणीमां आव्युं हतुं के जरत्कुमारना हाथे श्रीकृष्णनुं मोत थशे. एटले तो ते बिचारो बार वरसथी जंगलमां रहेतो हतो. श्रीकृष्ण त्यां पग पर पग चढावीने सूता हता. जरत्कुमारे दूरथी जोयुं के-आ कोई हरण छे. एटले हरण धारीने तीर मार्युं. तीर श्रीकृष्णने वाग्युं. नजीक आवीने जुए छे तो ते खेदखिन्न थयो अने कहेवा लाग्यो-‘अहा! भाई! तमे अहीं अत्यारे? बार वरसथी हुं जंगलमां रह्युं छुं छतां मारे हाथे आ गजब! अरे! काळो केर थई गयो! मारे हवे कयां जवुं?’ श्रीकृष्णे कह्युं-‘भाई! ले आ कौस्तुभमणि, ने पांडवो पासे जजे. तेओ तने राखशे कारण के आ मारुं चिन्ह छे. (कौस्तुभमणि बहु किंमती होय छे अने ते वासुदेवनी आंगळीए ज होय छे.)
जरत्कुमार तो त्यांथी विदाय थई गयो अने अहा! श्रीकृष्णनो देह छूटी गयो! रे! कौसुंबी वनमां श्रीकृष्ण एकला मरणाधीन! कोई त्यां शरण नहि. बापु! ए अपदमां शरण कयां छे? प्रभु! वासुदेवनुं पद पण अपद छे, अशरण छे. तेथी तो आचार्यदेवे ऊंचेथी पोकारीने कह्युं के-अहीं आव, अहीं आव ज्यां शुद्ध-शुद्ध चैतन्यधातु निजरसनी अतिशयता वडे स्थिरभावने प्राप्त छे.
पहेलां द्रष्टांत कहे छे-‘जेम कोई महान पुरुष मद्य पीने मलिन जग्यामां सूतो होय तेने कोई आवीने जगाडे-संबोधन करे के “तारी सूवानी जग्या आ