१३६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ नथी; तारी जग्या तो शुद्ध सुवर्णमय धातुनी बनेली छे, अन्य कुधातुना भेळथी रहित शुद्ध छे अने अति मजबूत छे; माटे हुं तने बतावुं छुं त्यां आव, त्यां शयन आदि करी आनंदित था.”
जुओ, जेणे दारू पीधो होय तेने भान नथी होतुं के हुं कयां सूतो छुं, ए तो विष्टाना ढगला पर पण जईने सूई जाय छे. तेने बीजो जगाडीने कहे के-
१. भाई! तारुं सिंहासन तो सुवर्णमय धातुनुं बनेलुं छे; वळी २. ते अन्य कुधातुना भेळथी रहित शुद्ध छे; अने ३. ते अति मजबूत छे. माटे हुं बतावुं त्यां आव अने तारा स्थानमां शयनादि करी आनंदित था. जुओ, आ द्रष्टांत छे. हवे कहे छे-
‘तेवी रीते आ प्राणीओ अनादि संसारथी मांडीने रागादिकने भला जाणी, तेमने ज पोतानो स्वभाव जाणी, तेमां ज निश्चिंत सूतां छे-स्थित छे,...’
जुओ, संसारी प्राणीओ अनादि निगोदथी मांडीने रागादिकने एटले शुभाशुभभावने भला जाणी अने तेने ज पोतानुं स्वरूप जाणीने तेमां निश्चिंतपणे सूतां छे. हिंसा, जूठ, चोरी, कुशील आदि अशुभभाव छे अने दया, दान, व्रत, तप, भक्ति आदि शुभभाव. ए बन्ने भाव विकार छे, विभाव छे. छतां अज्ञानीओ तेने स्वभाव जाणी, भला मानी तेमां ज सूता छे. अहाहा...! पोतानो स्वभाव तो शुद्ध ज्ञानानंदमय छे, पण तेनी खबर नथी एटले शुभाशुभभावने ज स्वभाव जाणे छे.
भाई! आ शरीर, धन, लक्ष्मी, स्त्री-पुत्र-परिवार, महेल-मकान इत्यादिनी अहीं वात नथी केमके ए तो प्रत्यक्ष परचीज छे; तेमां आत्मा नथी अने आत्मामां तेओ नथी. छतां अज्ञानीओ ते बधांने पोतानां माने छे ते तेमनी विपरीत मान्यता छे. भाई! आ शरीर मारुं, ने पैसा मारा ने बायडी-छोकरां मारां-ए विपरीत मान्यता छे अने ए ज दुःख छे. अज्ञानी एमां सुख माने छे पण धूळमांय त्यां सुख नथी. ए तो जेम कोई सन्निपातियो सन्निपातमां खडखड दांत काढे छे तेम आने मिथ्यात्वनो सन्निपात छे जेमां दुःखने सुख माने छे.
हा, पण दुनिया तो आ बधा धनवंतोने सुखी कहे छे? बापु! दुनिया तो बधी गांडा-पागलोथी भरेली छे; तेओ एमने सुखी कहे तेथी शुं? वास्तवमां तेओ मिथ्यात्वभाव वडे दुःखी ज छे.
अहीं कहे छे-शुभाशुभभाव-पुण्य-पापना भाव विभाव छे, मलिन छे, दुःखरूप