१३८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ छे पण ए तो नर्युं अंधपणुं छे, मूढता छे. आनंदना नाथ प्रभु आत्माने भूलीने शुभभावना प्रेममां पडवुं ए तो व्यभिचार छे बापु! अने एनुं फळ चारगतिनी जेल छे. समजाणुं कांई...?
कहे छे-नाथ! तुं जे पदमां सूतो छो अर्थात् जे शुभभावमां अंध बनीने स्वभावना भान विना सूतो छो ते तारुं पद नथी. आपणे कंईक ठीक छीए एम मानी भगवान! तुं जेमां सूतो छे ते तारुं सुवानुं स्थान नथी.
कोईने वळी थाय के आ ते केवी वात? आमां धनप्राप्तिनी वात तो आवी नहि? भाई! धनप्राप्तिना भाव तो एकलुं पाप छे. तेनी तो वात एककोर राख, केमके ए तो अपद, अपद, अपद ज छे. अहीं तो दया, दान, व्रत, तप, भक्ति, पूजा इत्यादिनी वृत्ति जे ऊठी छे ते वृत्तिमां तुं निश्चिंत थईने सूतो छे पण तेय अपद ज छे एम कहे छे. अहा... हा... हा...! ए वृत्तिथी रहित अंदर आनंदनो नाथ प्रभु आत्मा विराजी रह्यो छे तेनो निराकुल स्वाद लेतो नथी अने शुभवृत्तिना मोहमां अंध बन्यो छे? शुं आंधळो छे तुं? भाई! आ तो पैसावाळा तो शुं मोटा व्रत ने तपस्यावाळाना पण गर्व उतरी जाय एवुं छे. वळी तुं नवमी ग्रैवेयक गयो त्यारे जे व्रत ने तप पाळ्यां हतां ते अत्यारे छेय कयां? शुक्ल लेश्याना परिणाम बापु! चामडां उतारीने खार छांटे तोपण क्रोध न करे एवां तो महाव्रतना परिणाम ते वखते हता. पण ए बधा रागना-दुःखना परिणाम हता भाई! अहीं कहे छे-भाई! तुं एमां (शुभवृत्तिमां) नचिंत थईने सूतो छे पण ते तारुं पद नथी, ए अपद छे प्रभु!
आत्मा शुद्ध चिदानंदघन प्रभु परमात्मा छे. भगवाननी भक्ति आदि शुभभाव एनाथी विरुद्ध भाव छे, विभाव छे माटे ते अपद छे. भाई! आवी वात तो वीतरागना शासनमां ज मळे. वीतराग जैन परमेश्वर ज एम कहे के-अमारी सामुं तुं जोया करे अने स्तुति, भक्ति, पूजा इत्यादि शुभरागमां ज तुं सूतो रहे तो तुं मूढ छो. केम? केमके अमे (तारा माटे) परद्रव्य छीए अने परद्रव्य तरफनी वृत्ति जे थाय ते वडे जीवनी दुर्गति थाय छे. मोक्षपाहुडमां पाठ छे-गाथा १६ मां-के ‘परदव्वादो दुग्गइ’–परद्रव्य तरफना वलणथी दुर्गति छे. ते चैतन्यनी गति नथी अने ‘सद्दव्वादो सग्गइ होइ’– स्वद्रव्यना वलणथी सुगति-मुक्ति थाय छे. बापु! स्वद्रव्य सिवाय जेटलाय देव-गुरु- शास्त्र, शरीर, मन, वाणी, इन्द्रिय अने स्त्री-परिवार आदि परद्रव्य छे तेना तरफनुं जे तारुं वलण अने लक्ष छे ते बधो शुभाशुभराग छे अने ते तारी दुर्गति छे प्रभु! अहा! जगतने सत्य मळ्युं नथी अने एम ने एम आंधळे-बहेरुं कूटे राखे छे. भाई! पुण्य वडे स्वर्गादि मळे पण ए बधी दुर्गति छे, एमां कयां सुख छे? स्वर्गादिमां पण रागना क्लेशनुं ज भोगववापणुं छे. भाई! राग स्वयं पुण्य हो के पाप हो-दुःख ज छे.