Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2053 of 4199

 

१४० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ केमके ए सर्व परद्रव्य तारामां छे ज नहि. तेम ज अंदरमां रागादि विकार रहित तारी चीज निर्विकार शुद्ध छे. भाई! जे तारुं स्वपद छे ते चिदानंदघन प्रभु आत्मा बहारमां अन्यद्रव्यनी भेळ विनानो ने अंदरमां पुण्य-पापभावना विकारथी रहित सदाय शुद्ध छे. आवुं एकलुं चैतन्य-चैतन्य-चैतन्यमात्र जे छे ते तारुं अविनाशी पद छे. माटे द्रष्टि फेरवी नाख अने स्वपदमां रुचि कर, स्वपदमां निवास कर.

अहा! अनाकुळ शांतरसनो पिंड प्रभु आत्मा शुद्ध ज्ञायक तत्त्व छे; ज्यारे अंतरंगमां (पर्यायमां) उत्पन्न थता पुण्य-पापना भाव-शुभाशुभभाव आस्रव तत्त्व छे. ते आस्रवो एक ज्ञायकभावथी विरुद्ध अने दुःखरूप होवाथी नाश करवायोग्य छे; अने एक ज्ञायकभाव ज आश्रय करवा योग्य छे. केम? केमके ज्ञायकस्वभावनो आश्रय करवाथी आस्रवना अभावरूप संवर, निर्जरा ने मोक्ष प्रगट थाय छे. माटे कह्युं के पोताना शुद्ध ज्ञायकस्वभावनो आश्रय कर, एमां ज ठर, एने ज प्राप्त कर.

वळी ते शुद्ध चैतन्यधातु स्थायी छे. शुं कह्युं? आ शुभाशुभभाव तो अस्थायी, नाशवंत, कृत्रिम अने दुःखरूप छे ज्यारे ज्ञायकमूर्ति प्रभु आत्मा सदा स्थायी, अविनाशी, अकृत्रिम अने सुखधाम छे. हवे आवो हुं आत्मा छुं एवुं सांभळवाय मळे नहि ते बिचारो अज्ञानी शुं करे? धर्म मानीने दया, दान आदि करे पण एमां कयां धर्म छे? बिचारो क्रियाकांड करी करीने मरे अने चार गतिमां रखडया करे! केम? केमके पुण्य- पापना भाव अस्थायी छे, दुःखरूप छे. एक मात्र चैतन्यपद ज त्रिकाळ स्थिर अने सुखरूप छे. माटे कहे छे-

‘ते पदने प्राप्त थाओ-शुद्ध चैतन्यरूप पोताना भावनो आश्रय करो.’ छे? अहा! भाषा तो जुओ! कहे छे-अनंतकाळमां तें एक रागनो ज आश्रय कर्यो छे अने तेथी तुं दुःखमां पडयो छे. पण हवे शुद्ध चैतन्यमूर्ति-ज्ञायकमूर्ति प्रभु आत्मानो आश्रय कर केमके ते तारुं निजपद छे, सुखपद छे. भाई! भाषा तो सादी छे, पण भाव तो जे छे ते गंभीर छे. भाई! त्रिलोकनाथ तीर्थंकर परमात्मानो अनादि-अनंत आ पोकार छे. अनंत तीर्थंकरो भूतकाळमां थई गया, वर्तमानमां महाविदेहक्षेत्रमां तीर्थंकर बिराजमान छे अने भविष्यमां अनंत थशे; ते सर्वनो आ एक ज पोकार छे. शुं? के भाई! तने सुख जो’ तुं होय तो अंतरमां जा, अंदर सुखनुं निधान ज्ञायकमूर्ति चैतन्यमहाप्रभु परमात्मस्वरूपे बिराजे छे तेमां जा, तेनो आश्रय कर अने तने तारा निजानंदपदनी प्राप्ति थई जशे; बाकी तुं रागमां जा’ छो ए तो दुःख छे. आवी वात छे प्रभु!

हा, पण आप शुभरागमांथी-पुण्यभावमांथी खेंची काढीने कयां लई जवा इच्छो छो?