समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ १४१
देवाधिदेव सिद्ध परमात्मानुं जे पद छे ते ज पद निश्चये तारुं छे भाई! शुभरागमांथी-पुण्यभावमांथी खेंची काढीने तने प्रभुमां लई जवो छे प्रभु! तेथी तो कह्युं के-अंदर त्रणलोकनो नाथ प्रभुस्वरूपे विराजी रह्यो छे तेनो आश्रय कर अने जोके अनंतसुख-पद-सिद्धपद तारुं छे.
लौकिकमां आवे छे ने के-
ए हरि एटले कोण? आ शुद्ध चैतन्यधातुमय भगवान आत्मा हों; बीजा कोई कर्ता-धर्ता-हर्ता हरि नहि. पंचाध्यायीमां छे के-जे अज्ञान अने राग-द्वेषने हणे-हरी ले ते हरि. तो एवो आ प्रज्ञाब्रह्मस्वरूप आत्मा हरि छे. अहीं कहे छे एवा हरिस्वरूप भगवान आत्मामां द्रष्टि लगाव, तारां नयनने (श्रुतज्ञानने) एमां जोडी दे, अने तेनो ज आश्रय कर, तेमां ज रमणता कर. [प्रवचन नं. २७२ थी २८० (१९ मी वार) *दिनांक २प-१२-७६ अने २६-१२-७६