Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-२०३ ] [ १४प ज छे, हमणां पण ते भगवानस्वरूप ज छे. हवे रागना कणमां राजी रहेनार अज्ञानीने ‘हुं भगवान छुं’ एम केम बेसे?

जुओ, आ मूळ गाथा भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यनी छे; अने आ टीका अमृतचंद्राचार्यनी छे. अहा... हा... हा...! आचार्य अमृतचंद्र ज्ञानी, आत्मध्यानी परम अतीन्द्रिय आनंद जेनी छाप छे एवा प्रचुर स्वसंवेदनने अनुभवता स्वरूपमां रमता हता. त्यां जरी विकल्प आव्यो अने आ टीका थवा काळे थई गई. अहा... हा... हा...! छेल्ले तेओ कहे छे के-आ टीका अमृतचंद्रे करी छे एवा मोहमां हे जनो! मा नाचो. गजब वात छे ने!

पण प्रभु! आपे टीका लखी छे ने? प्रभु! ना केम कहो छो? तो कहे छे-टीका तो अक्षरोथी रचाई छे; तेमां विकल्प निमित्तमात्र छे. अहा... हा... हा...! अनंत परमाणुओना पिंड एवा अक्षरोमां हुं कयां आव्यो छुं? अने ए विकल्पमां-विभावमां पण हुं कयां छुं ? हुं तो शुद्ध चैतन्यस्वभावी आत्मामां छुं. तेथी टीकानो रचनारो हुं-आत्मा छुं ज नहि. टीका लखवानी अक्षरोनी-परद्रव्यनी क्रिया आत्मा करी शके ज नहि. आवी वात छे. त्यारे अज्ञानी बे-चार पुस्तको बनावे त्यां तो-‘अमे रच्युं छे, अमे कर्युं छे, अमारुं आगळ नाम लखो, अमारो फोटो मूको’-इत्यादि फूलाई ने मानमां मरी जाय छे. अरे भाई! कोना फोटा? शुं आ धूळना? त्यां (कागळ उपर) तो आ शरीरनो-जडनो फोटो छे. शुं ते फोटामां-जडमां तुं आवी गयो? बापु! ए जडनो फोटो तो जड ज छे, एमां कयांय तुं (आत्मा) आव्यो नथी. ए तो रजकणो त्यां ए रीते परिणम्या छे. आ शरीरना रजकणोय त्यां गया नथी. अहा! छतांय पोतानो फोटो छे एम मानी अज्ञानी फूलाय छे-हरखाय छे. पण बापु! ज्यां राग पण तारो नथी त्यां फोटो तारो कयांथी आव्यो? अहा! प्रभु! तुं कोण छे तेनी तने खबर नथी.

अहीं कहे छे-‘खरेखर आ भगवान आत्मामां’-भग नाम ज्ञान अने आनंदनी लक्ष्मी अने वान एटले वाळो-एवा ज्ञान अने आनंदनी लक्ष्मीवाळा आत्मामां बहु द्रव्य-भावो मध्ये जे अतत्स्वभावे अनुभवाता भावो छे ते अपदभूत छे. बहु द्रव्य एटले रजकण आदि परद्रव्य ने भावो एटले रागादि भावो. अहा! अंदरमां जे पुण्य- पापना भावो छे ते अतत्स्वभावे अनुभवाय छे. ते भावो आत्माना स्वभावरूप नथी, स्वस्वभावरूप नथी तेथी कहे छे अतत्स्वभावे-परस्वभावरूपे अनुभवाय छे. भाई! आ पंचमहाव्रतना परिणाम, दया, दान, भक्ति आदिना परिणाम अतत्स्वभावे अनुभवाय छे अर्थात् तेओ आत्मस्वभावे अनुभवाता नथी. आवी वात! लोको जेने धर्म मानीने बेठा छे ते भाव अहीं कहे छे, अतत्स्वभावे छे. अने अत्यारे ए