समयसार गाथा-२०३ ] [ १४९ स्थिर रहेठाण छे, माटे ते पदभूत छे, अने बधाय रागादि भाव अस्थायी-अध्रुव होवाने लीधे अपदभूत छे. ल्यो, आवी व्याख्या पद-अपदनी.
हवे कहे छे-‘तेथी समस्त अस्थायी भावोने छोडी, जे स्थायीभावरूप छे एवुं परमार्थरसपणे स्वादमां आवतुं आ ज्ञान एक ज आस्वादवा-योग्य छे.’
अहा... हा... हा...! कहे छे-दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादिना अस्थायी भावोने छोडी दई... जुओ, छे अंदर? ते समस्त अस्थायी भावोने छोडी दई अर्थात् तेनो द्रष्टिमांथी आश्रय छोडी दई परमार्थरसपणे स्वादमां आवतुं जे स्थायीभावरूप आ ज्ञान ते एक ज आस्वादवायोग्य छे. अहा! रागनो जे स्वाद छे ते तो झेरनो स्वाद छे. रागनो रस ज झेर छे, दुःख छे; ज्यारे परमार्थरसपणे स्वादमां आवतुं ज्ञान चिदानंदमय अमृतरसनो सागर छे. अहीं कहे छे-रागने छोडी ते एक ज्ञान ज आस्वादवायोग्य छे. जन्म-मरणरहित थवानो आवो वीतरागनो मार्ग बापा! बाकी तो बधुं जे करे ते रखडवा माटे छे.
अहा! कहे छे-ते परमार्थरसपणे स्वादमां आवे छे. कोण? के आ ज्ञान; ज्ञान एटले ज्ञानमात्रभावरूप आत्मा. केवो छे ते? चिदानंदरसना अमृतथी भरेलो छे अने तेथी ते एक ज आस्वादवायोग्य छे.
त्यारे कोईकहे छे-रसगुल्लांनो, मैसूबनो जे स्वाद आवे छे ते तो खबर छे, पण आ स्वाद वळी केवो?
भाई! मैसूबनो अने रसगुल्लांनो जे स्वाद तुं कहे छे ए तो जडनो स्वाद छे अने तेने आत्मा कदी भोगवतो नथी-भोगवी शकतो नथी. आ हाड-मांसना बनेला स्त्रीना शरीरने आत्मा भोगवे छे एम त्रणकाळमां नथी. ए तो ए तरफनुं लक्ष जतां ‘आ मैसूबादि ठीक छे, स्त्रीनो स्पर्श ठीक छे’ एवो जे राग तुं उत्पन्न करे छे ते रागने- झेरने-दुःखने तुं भोगवे छे. अज्ञानी रागनो स्वाद ले छे अने माने छे के हुं पर पदार्थोने भोगवुं छुं. केवी विपरीतता! अहीं कहे छे-रागनो जे स्वाद (बेस्वाद) छे तेने छोडी दईने आ ज्ञान एक ज आस्वादवायोग्य छे केमके तेनो स्वाद अतीन्द्रिय आनंदमय अमृतनो स्वाद छे. आवो स्वाद-अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद जेमां आवे तेनुं नाम सम्यग्दर्शन अने धर्म छे.
शुं कहे छे? जरी सूक्ष्म वात छे भाई! आ आत्मा जे छे तेमां पुण्य-पापना- व्रत-अव्रतना ईत्यादि जे परिणाम थाय छे ते बधाय क्षणिक, अनित्य अस्थायी होवाथी रहेनारनुं रहेठाण बनवा योग्य नथी माटे अपदभूत छे; एक वात. परंतु आत्मा त्रिकाळ स्थायी एक चैतन्यमात्रपणे होवाथी रहेवानुं रहेठाण बनवा योग्य छे माटे ते पदभूत छे, माटे समस्त अस्थायी भावोने छोडीने, आ अतीन्द्रिय आनंदना रसपणे अनुभवमां