हवे मोक्षरूप अस्तिनी वात करे छे, पूर्णतानी वात करे छे. ‘सर्वभावान्तर- च्छिेद’- पोताना भावथी अनेरा सर्व जीव-अजीव (चराचर), गति करनार अने गतिस्थ (स्थित रहेनार) सर्व पदार्थोने सर्वक्षेत्र, सर्वकाळ अने सर्व विशेषो सहित एक ज समयमां जाणनारो छे. आ पर्यायना पूर्ण सामर्थ्यनी वात छे. पोताना भावने तो स्वानुभूतिथी जाणे, पण भावान्तर कहेतां बीजाना भावोने पण संपूर्ण जाणनार छे. पोताथी अनेरा बधा भावो एटले के सर्वक्षेत्रसंबंधी अने सर्वकाळसंबंधी बधा जीव-अजीव पदार्थोने सर्व विशेषो सहित-एटले के एकेक द्रव्यना बधा गुणो अने पर्यायो सहित-एक ज समये जाणनार छे. आम, आत्मा सर्वज्ञ स्वभावी छे एम सिद्ध कर्युं.
सर्वज्ञ एक ज समये बधुं जाणनार-देखनार छे. सर्वज्ञ पहेला समये जाणे अने बीजा समये देखे एम माननारा सादि-अनंत केवळज्ञान-केवळदर्शनमां अने सादि-अनंत काळमां बे भागला पाडी नाखे छे. आ आखी द्रष्टि तत्त्वविरुद्ध छे, कल्पनामय छे. (परमात्मा एक ज समये बधुं देखे अने जाणे छे- माटे सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी एक ज समये छे)
अ हा हा...! आत्मानी ज्ञानपर्यायनी एक समयमां जाणवानी ताकात केटली! पोताना बधा भाव अने परना बधा भावने एक समयमां जाणे तेवी तेनी योग्यता छे. आने मोक्षतत्त्व अथवा केवळज्ञानतत्त्व कहीए. ए पर्यायनुं सामर्थ्य पण अद्भूत छे; तो पछी द्रव्यना सामर्थ्यनुं तो शुं कहेवुं? आम एक समयनी केवळज्ञान पर्यायनुं अलौकिक सामर्थ्य बतावी सर्वज्ञनो अभाव माननार मीमांसकोनुं निराकरण कर्युं.
आ तो दिगंबर संतो-मुनिओना सिद्धांत एनुं शुं कहेवुं? श्रीमद् राजचंद्रे कह्युं छे ने के तेमना एकेक शब्दमां, एकेक वाक्यमां आगम भर्या छे. आ प्रथम मांगळिकना श्लोकमां चार बोल कहीने अस्ति सिद्ध करी छे. भगवान आत्मा वस्तु छे, तेनो गुण छे चित्स्वभाव. चित्स्वभाव ते गुण छे केमके अहीं भेद पाडीने समजाववुं छे. एटले चित्स्वभाव स्वभाववाननो छे एम समजाव्युं. चित्स्वभाव जे छे ते अभेदथी जोईए तो द्रव्य छे, भेदथी जोईए तो गुण छे. ‘चित्स्वभावाय भावाय’ अहीं भाव छे ते चित्स्वभाव छे एम अभेदथी लीधुं. चित्स्वभाव गुण छे ते भेदथी कह्युं.
आनंदघनजीमां लीधुं छे ने? के अनेकांत एटले शुं? सत्ता जे गुण छे तेने अभेदपणे कहेवुं ते द्रव्य-सत्ता, अभेदपणे द्रव्यरूप कहेवाय, ते ज सत्ता भेद अपेक्षाए गुणरूप कहेवाय. सत्ताने वस्तुरूप कहेवी, अभेदरूप कहेवी ए द्रव्यरूप छे, तेने भेदथी कहेवी ते गुणरूप छे. भेदाभेद ते अनेकांत छे. आ भगवान आत्मा-जीवद्रव्य सुखस्वरूप छे एम अभेदथी लीधुं. भेदथी कहेवुं होय तो सुखगुणवाळो ते आत्मा; ए भेदनुं कथन छे.