प्रवचनसार गाथा १०६मां आवे छे के सत्ता अने द्रव्यने एटले के गुण अने गुणीने विभक्त प्रदेशत्वनो अभाव छे. बन्नेना प्रदेशो एक छे एम होवा छतां सत्ता अने द्रव्यने अन्यत्व छे, एटले अतद्भाव छे. अहीं एक-बीजामां अभावरूप छे माटे अन्यत्व छे एम नथी. द्रव्य, गुण के पर्याय वच्चे अतद्भावरूप अन्यत्व छे. जे द्रव्य छे ते गुण नथी, गुण छे ते द्रव्य के पर्याय नथी अने पर्याय छे ते द्रव्य के गुण नथी. आ प्रमाणे अतद्भावरूप अन्यत्व छे.
अरेरे! अनादिथी जन्म-मरण करीने भाई तुं दुःखी छे. संसारमां गरीब थईने भटकतो-रांको थईने रखडे छे. पोतानी बादशाही शक्तिनी खबर नथी. पोते बादशाह? हा, भाई! भगवान् पूर्णानंदनो नाथ बादशाह छे. ते बादशाहनो जे स्वीकार करे तेने स्वतंत्र अतीन्द्रिय सुखस्वरूप पर्याय प्रगटे छे.
हवे भावार्थ कहे छे.
भावार्थः– अहीं मंगळ अर्थे शुद्धात्माने नमस्कार कर्या छे. कोई एम प्रश्न करे के कोई बीजा ईष्टदेवनुं नाम लईने नमस्कार केम न कर्या छे?
तेनुं समाधानः– वास्तविकपणे ईष्टदेवनुं सामान्य स्वरूप सर्वकर्मथी रहित, सर्वज्ञ, वीतराग, शुद्धआत्मा ज छे. प्रगटेलानी आ वात छे. तेथी अध्यात्म शास्त्रमां समयसार कहेवाथी ईष्टदेव आवी गया. एक ज नाम लेवाथी मतवादीओ मतपक्षनो विवाद करे छे. ते सर्वनुं निराकरण समयसारनां विशेषणो वर्णवीने कर्युं छे. अन्यवादीओ पोताना ईष्टदेवनुं नाम ले छे, तेमां ईष्ट शब्दनो अर्थ घटतो नथी, बाधाओ आवे छे; अने स्याद्वादी जैनोने तो सर्वज्ञ, वीतराग, शुद्ध आत्मा ज ईष्ट छे. ते बधां नामो एने लागु पडे छे, पछी भले ते ईष्टदेवने परमात्मा कहो, परमज्योति कहो, परमेश्वर कहो, परम ब्रह्म कहो, परम शिव कहो. आ शिव जे अन्यमतीओ कहे छे ते नहि. सर्वज्ञ वीतराग केवळज्ञानी परमात्माओने शिव पण कहेवामां आवे छे. तेमने निरुपद्रव दशा प्रगटी माटे शिव कहेवाय छे. परम आनंदनो नाथ पर्यायमां प्रगटयो तेने ‘पर ब्रह्म’ कहेवाय छे. आत्मा वस्तुपणे ‘पर ब्रह्म’ छे; सर्वज्ञ अरिहंत ए पर्यायमां ‘परमात्मा’ छे, आत्मा पर्याय विनानो एकलो ‘परमात्मा स्वरूप’ ज छे. सर्वज्ञ परमेश्वर प्रगट ‘परम ज्योति’ छे, आत्मा त्रिकाळ ‘परमचैतन्यज्योति’ छे. श्रीमदे कह्युं छे ने केः-
पर्यायमां एनो आदर, विचार-ज्ञान करे तो पामे एवी आ आत्मानी वात छे.