Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] १७

आ प्रगट थयेला शुद्धात्मानां नाम छे. आ शुद्ध चैतन्य भगवान नित्य ‘निरंजन’ छे. सर्वज्ञ परमेश्वर पर्यायमां ‘निरंजन’ छे. अंजन कहेतां मेल जेमां नथी ते ‘निरंजन’ कहेवाय छे. सर्वज्ञ वीतराग पर्यायमां ‘निष्कलंक’ छे, एम भगवान आत्मा वस्तुपणे ‘निष्कलंक’ छे. सर्वज्ञ भगवान पर्यायपणे क्षय न पामे एवी ‘अक्षय’ चीज छे, तो आत्मा पोते स्वरूपथी ‘अक्षय’ छे. कुंदकुंदाचार्यदेवे त्रिकाळी द्रव्यना आश्रये प्रगटेलो सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप जे मोक्षनो मार्ग, एने चारित्र पाहुडमां ‘अक्षय अमेय’ कह्यो छे. क्षय रहित, मर्यादा विनानी चीज छे. सर्वज्ञपणुं प्रगट थयुं पछी कदीय एनो अभाव थवानो नथी ए अपेक्षाए तेओ ‘अव्यय’ छे. पर्याय बीजे समये व्यय थाय ए जुदी वात छे. पण एक वखत सर्वज्ञपणुं प्रगट थयुं पछी अल्पज्ञ थई जाय एम कदीय बनतुं नथी. सर्वज्ञदशा ए व्यय विनानो उत्पाद छे-एम प्रवचनसारमां आवे छे. भगवान आत्मा वस्तुपणे ‘अव्यय’ छे.

सर्वज्ञ वीतराग अरिहंतदेव ‘शुद्ध’ छे, ए ईष्टदेव छे. भगवान आत्मा परमार्थे ‘शुद्ध’ छे, अने ए ज आत्माने ईष्ट छे. प्रवचनसारमां कह्युं छे के भगवानने (अरिहंतने) पुण्य-पापरूपी अनिष्टनो नाश थई ईष्टपणुं प्रगटयुं छे. ईष्ट जे वस्तु-भगवान पूर्णानंद प्रभु एना आश्रये पर्यायमां ईष्टपणुं प्रगटयुं छे; अने अनिष्ट जे अज्ञान अने रागद्वेष-तेनो नाश थयो छेे.

सर्वज्ञ परमात्मा पर्यायमां ‘बुद्ध’ छे. एक समयमां ज्ञाननी पूर्ण दशा प्रगट थतां पोते अने आखुं लोकालोक ज्ञानमां आव्युं एवा भगवानने ‘बुद्ध’ कहे छे. आ भगवान आत्मा द्रव्ये ‘बुद्ध’ छे, ज्ञानस्वरूप बुद्धनी मूर्ति छे. सर्वज्ञ परमेश्वर ‘अविनाशी’ छे, एम आ आत्मा पण ‘अविनाशी’ छे. एक समयमां सर्वज्ञदशा जेमने प्रगट थई छे एवा भगवान ‘अनुपम’ कहेतां कोईनी साथे उपमा न आपी शकाय तेवा छे. भगवानने उपमां कोनी? एम ईष्टस्वरूप शुद्ध आनंदनो नाथ भगवान आत्मा जे द्रष्टिनो विषय छे ते त्रिकाळ ‘अनुपम’ छे.

सर्वज्ञ वीतराग कोईथी छेदाय नहि एवा ‘अच्छेद्य’ छे. एम भगवान आत्मा पण ‘अच्छेद्य’ छे, छेद-खंड थाय नहीं एवी चीज छे. भगवान सर्वज्ञ पर्यायमां ‘अभेद्य’ छे, एटले कोईथी भेदाता नथी. एम भगवान आत्मा पण ‘अभेद्य’ छे. जे पर्यायथी भेदातो नथी एवो आत्मा अभेद्य छे. गीतामां पण ‘अच्छेद्य’ अने ‘अभेद्य’ एवा शब्दो आवे छे ए वात अहीं नथी. आ तो सर्वज्ञथी सिद्ध थयेली वात छे.