सर्वज्ञ परमात्माने लागु पडे छे ते ज नाम अनंत अनंत स्वभावोथी संयुक्त त्रिकाळी, ध्रुव, भगवान आत्माने लागु पडे छे.
कळश टीकाकारे तो आत्माने उपादेय गणीने त्यां निश्चयथी आत्माने लीधो छे. अंतरमां निश्चयनुं लक्ष छे तेथी व्यवहारनी साथे निश्चयनी वात करी छे. परने उपादेय करे, पर्यायने उपादेय करवा जाय, के भेदने उपादेयने करवा जाय तो विकल्प उत्पन्न थाय छे. शुद्ध, पूर्णानंद भगवानने उपादेय करतां निर्विकल्पता थाय छे. अहीं (समयसारमां) सर्वज्ञ वीतराग पर्यायपणे प्रगट छे तेमने लेवामां आव्या छे. बेय वात (अपेक्षाए) बराबर छे.
ते सर्वनामो कथंचित् -ते ते अपेक्षाए -सत्यार्थ छे. सर्वथा एकांतवादीओने भिन्न नामोमां विरोध छे. अज्ञानीओने एकने जुदां जुदां नाम आपवामां विरोध आवे छे. पण स्याद्वादीओने विरोध नथी. माटे जेवी वस्तु छे तेम तेने समजवी जोईए.
सौ–ज्ञाता लखीने नमुं, समयसार सहु–भूप.
जे निज अनुभवथी प्रगट थाय छे, चैतन्य जेनुं स्वरूप छे, बधाने जाणवानो जेनो स्वभाव छे, सौनो जे राजा छे एवा समयसारने हुं जाणीने नमुं छुं आमां ‘नमः समयसाराय’ नो आखो प्रथम कळश टूंकामां आवी जाय छे.