Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 34 of 4199

 

भाग-१ ] २७

थाओ एम कहे छे. एटले टीकाना काळमां मारो साधक स्वभाव वधशे-निश्चयथी वधशे. भगवानने पूछयुं नथी के टीका करती वखते मने परम विशुद्धि थशे के नहीं? पण हुं ‘शुद्ध चिन्मात्र मूर्ति छुं’ ने? अहाहा...!! आचार्यदेव कहे छे-आत्मानो जे ‘ज्ञ’ स्वभाव-तेनी मने द्रष्टि अने आश्रय छे तेथी पर्यायमां जे विशुद्धि -निर्मळता छे ते वधीने परम विशुद्ध थशे एम निश्चय थयो छे. अहाहा...! शुं अप्रतिहत द्रष्टि! शुं चैतन्यना अनुभवनी बलिहारी!! अने शुं चैतन्यना पूर्णस्वभावना सामर्थ्यनी चमत्कारी रमत!!!

प्रभु! तुं सांभळ. तुं सर्वज्ञस्वरूपी छो के नहीं? नाथ! तुं कोण छो अने केवडो छो? तुं जेवो छो तेवो जो ख्यालमां आवी जाय तो क्रमबद्ध, अकर्तापणुं अने ज्ञातापणुं सिद्ध थई जाय. आमां नियतवाद छे पण पांचेय समवाय एकीसाथे छे. स्वभाव, पुरुषार्थ, भवितव्य, काळलब्धि, कर्मना उपशमादि -बधा एकसाथे छे.

मारी शुद्धि थई छे अने विशेष आश्रय थतां शुद्धि वधशे, ए बधी मने खबर छे. हुं आ भावे ज -सम्यक्दर्शन अने सम्यक्ज्ञानना भावे ज पूर्ण केवलज्ञान लेवानो छुं. विशुद्धि थाओ एम कह्युं एमां ज ए आव्युं के प्रगट विशुद्धि साथे अशुद्धि पण छे; नहीं तो परम विशुद्धि थाओ ए केवी रीते कहेत? अशुद्धतानो अंश अनादिनो छे. मारी पर्यायमां जे अशुद्धतानो अंश छे, ए परिणतिनो हेतु मोह नामनुं कर्म छे. परिणति विकारी छे माटे पर परिणति कही, केमके आ परिणति स्वभावभूत नथी. नियमसारना कळशमां (कळश २प३) आवे छे के -मुनिनी दशा अने केवळज्ञानीनी दशामां फेर माने ते जड छे. अहीं मुनि एम कहे छे के मारी दशामां जरा राग छे. नियमसारमां, आ जे जरी रागांश छे तेने गौण करी नाख्यो छे, केमके ए नीकळी जवानो छे. तेथी एम कह्युं के मुनिमां अने केवळीमां फेर नथी; फेर माने ते जड छे. प्रवचनसारनी छेल्ली पांच गाथाओ -पंचरत्न-एमां एम कह्युं छे के -जेणे मोक्षमार्ग साध्यो छे तेने अमे मोक्षतत्त्व कहीए छीए. परंतु अहीं जरा अशुद्धि छे एम ख्यालमां लीधुं छे.

आ अशुद्ध परिणतिनो हेतु मोह नामनुं कर्म छे. आ निमित्त-नैमित्तिक संबंध छे. तेना उदयना विपाकने लीधे विकार छे एम नथी. पण मारुं विपाकमां जोडाण थयुं एने लीधे छे. मारी परिणति नबळी-कमजोर छे एटले जोडाई जाय छे. त्यां निमित्त कांई करतुं नथी. एक बाजु एम कहे के ‘समकितीने आस्रव अने बंध होय नहिं’ ए मिथ्यात्व अने अनंतानुबंधी कषायना अभावनी अपेक्षाए छे. एक बाजु एक कहे के ‘ज्ञानीनो भोग निर्जरानो हेतु छे,’ ए द्रष्टिना जोरनी अपेक्षाए वात करी छे. अहीं मुनि कहे छे के मारे अशुद्धतानो पण अंश छे, तेमां निमित्त मोहकर्म छे.