Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२८ [ समयसार प्रवचन

रागादि परिणामोनी व्याप्ति मारामां माराथी छे. पर्यायमां विकारनी व्याप्ति मारी कमजोरीने लईने अनादिनी छे. केटलीक परिणति निर्मळ होवा छतां पूर्ण निर्मळ नहीं होवाथी, मारे निरंतर कलुषित परिणाम छे; एनाथी हुं व्याप्त छुं. कर्म तो निमित्तमात्र छे. स्वामी कार्तिकेय अनुप्रेक्षामां आवे छे के -समकिती वस्तु तरीके पोताने प्रभु माने छे, पण पर्यायमां पोताने तृण-तुल्य पामर माने छे. क्यां केवलज्ञाननी दशा अने क्यां मिथ्यात्व अने अनंतानुबंधी कषायना अभावपूर्वकनी चारित्र दशा? द्रव्य तरीके हुं पूर्ण प्रभु छुं, ए मारुं लक्ष्य छे. पर्यायमां पामरता छे, तृण-तुल्य छुं. ए टाळवा माटे मारो प्रयत्न टीका करवा काळे छे. अंतर स्वभाव- सन्मुख थवामां ज मारा प्रयत्ननी दशा छे. मुनिराज कहे छे के मारी पर्यायमां मलिनता छे, संज्वलन कषाय छे, छतां द्रव्ये शुद्ध छुं. ए शुद्ध स्वभावनी एकाग्रताना बळे सर्व कषायनो नाश थई मने परम विशुद्धि थशे ए निश्चित छे.

भावार्थः– अमृतचंद्राचार्य कहे छे के मारी परिणतिमां थोडी अशुद्धता छे ए मारा लक्ष बहार नथी. हुं शुद्ध ज थई गयो अने अशुद्धता आवे छे ए बधी निर्जरी जाय छे एम नथी. अशुद्धता आवे छे एटली मलिन दशा छे, एटलो कर्मनो बंध थाय छे. तेमां मोहकर्म निमित्त छे. पर्यायमां अशुद्धता छे ए माराथी मारामां व्याप्त छे. माटे एम गर्वमां न चढी जईश के समकित थई गयुं एटले बस सर्व थई गयुं. कर्मनो थोडो बंध थाय छे, एमां अुशद्धता निमित्त पण छे. जुओ, द्रष्टिनुं जोर तो ध्रुव उपर छे, अने पर्यायमां शुद्धता अने अशुद्धता बन्ने अंशोनुं ज्ञान यथार्थ वर्ते छे.

शुद्ध द्रव्यनुं जेने प्रयोजन छे एटले जे ज्ञानमां, शुद्ध पूर्ण द्रव्य-स्वभाव-ज्ञायक वीतरागस्वभाव-ध्रुव एकरूप स्वभावनुं ज प्रयोजन छे एवा द्रव्यार्थिकनयनी द्रष्टिए हुं ‘शुद्ध चिन्मात्रमूर्ति’ छुं. बधा सम्यक्द्रष्टि पोताने द्रव्यद्रष्टिए शुद्ध चिन्मात्र मूर्ति माने छे. चोथे, पांचमे, छठ्ठे गुणस्थाने पर्यायमां फेर छे ए वात जुदी छे. मोक्षमार्ग प्रकाशकमां (रहस्यपूर्ण चिठ्ठीमां) आवे छे के जेवुं समकित तिर्यंचनुं एवुं समकित सिद्धनुं. द्रव्यद्रष्टिए चिन्मात्र मूर्ति छुं, पण परिणतिमां मोहकर्मना उदयनुं निमित्त पामीने मलिनता माराथी छे. मोक्षमार्ग प्रकाशक प्रथम अधिकारमां आवे छे के - मुनिने अशुभ भाव तो छे ज नहीं, फक्त कोई धर्मलोभी जीवने देखीने उपदेश देवानो्र शुभ भाव आवे छे; ए शुभ भाव पण पोताना पुरुषार्थनी कमजारी छे.

छठ्ठे गुणस्थाने, ध्यानना चार भाग पडतां आर्तध्यान हजु छठ्ठे छे एम आवे छे. छ लेश्यामां छठ्ठे गुणस्थाने कृष्ण, नील अने कापोत नथी, ज्यारे पीत, पद्म अने शुकल कही छे. छठ्ठे गुणस्थाने कषायनो अंश छे ने? एटलुं आर्तध्यान छे. एटलो आत्मा पीडाय छे. माटे क्यां क्यां कई अपेक्षाए कथन छे ए बराबर समजवुं जोईए.