केवी छे? अनादि काळथी अन्य (पर) भावना निमित्तथी थतुं जे परमां भ्रमण तेनी विश्रांति (अभाव) वश अचलपणाने पामी छे. आ विशेषणथी, चारे गतिओने परनिमित्तथी जे भ्रमण थाय छे तेनो पंचमगतिमां व्यवच्छेद थयो. वळी ते केवी छे? जगतमां जे समस्त उपमायोग्य पदार्थो छे तेमनाथी विलक्षण अद्भूत माहात्म्य होवाथी तेने कोईनी उपमा मळी शकती नथी. आ विशेषणथी, चारे गतिओमां जे परस्पर कथंचित् समानपणुं मळी आवे छे तेनो पंचमगतिमां व्यवच्छेद थयो. वळी ते केवी छे? अपवर्ग तेनुं नाम छे. धर्म, अर्थ अने काम- ए त्रिवर्ग कहेवाय छे; मोक्षगति आ वर्गमां नहि होवाथी तेने अपवर्ग कही.- आवी पंचमगतिने सिद्धभगवंतो पाम्या छे. तेमने पोताना तथा परना आत्मामां स्थापीने, समयनो (सर्व पदार्थोनो अथवा जीवपदार्थनो) प्रकाशक एवो जे प्राभृत नामनो अर्हत्प्रवचननो अवयव (अंश) तेनुं, अनादि काळथी उत्पन्न थयेल मारा अने परना मो्रहना नाश माटे, हुं परिभाषण करुं छुं. केवो छे ते अर्हत्प्रवचननो अवयव? अनादिनिधन परमागम शब्दब्रह्मथी प्रकाशित होवाथी, सर्व पदार्थोना समूहने साक्षात् करनार केवळीभगवान सर्वज्ञथी प्रणीत होवाथी अने केवळीओना निकटवर्ती साक्षात् सांभळनार तेम ज पोते अनुभव करनार एवा श्रुतकेवळी गणधरदेवोए कहेल होवाथी प्रमाणताने पाम्यो छे. अन्यवादीओना आगमनी जेम छद्मस्थ (अल्पज्ञानी) नी कल्पना मात्र नथी के जेथी अप्रमाण होय.
परिभाषणे’ धातुथी ‘परिभाषण’ कर्यो छे. तेनो आशय आ प्रमाणे सूचित थाय छेः चौद पूर्वमां ज्ञानप्रवाद नामना पांचमां पूर्वमां बार ‘वस्तु’ अधिकार छे; तेमां पण एक एकना वीश वीश ‘प्राभृत’ अधिकार छे. तेमां दशमां वस्तुमां समय नामनुं जे प्राभृत छे तेनां मूळ सूत्रोना शब्दोनुं ज्ञान तो पहेलां मोटा आचार्योने हतुं अने तेना अर्थनुं ज्ञान आचार्योनी परिपाटी अनुसार श्री कुंदकुंदाचार्यने पण हतुं. तेमणे समयप्राभृतनुं परिभाषण कर्युं-परिभाषासूत्र बांध्यु. सूत्रनी दश जातिओ कहेवामां आवी छे तेमां एक ‘परिभाषा’ जाति पण छे. अधिकारने जे यथास्थानमां अर्थद्वारा सूचवे ते परिभाषा कहेवाय छे. श्री कुंदकुंदाचार्य समयप्राभृतनुं परिभाषण करे छे एटले के समयप्राभृतना अर्थने ज यथास्थानमां जणावनारुं परिभाषासूत्र रचे छे.
आचार्ये मंगळ अर्थे सिद्धोने नमस्कार कर्यो छे. संसारीने शुद्ध आत्मा साध्य छे अने सिद्ध साक्षात् शुद्धात्मा छे तेथी तेमने नमस्कार करवो उचित छे. कोई ईष्टदेवनुं नाम लई नमस्कार केम न कर्यो तेनी चर्चा टीकाकारना मंगळ पर करेली छे ते अहीं पण जाणवी. सिद्धोने ‘सर्व’ एवुं विशेषण आप्युं छे; तेथी ते सिद्धो अनंत छे एवो अभिप्राय