पडया पछी कहेशो के ते पचे नहि त्यां सुधी धर्म न थाय, अने पछी कहेशो के दिशा (संडास) उतरे नहि त्यां सुधी धर्म न थाय ने पछी पाछुं पेट तो भूख्युं ने भूख्युं, तो पछी धर्म क्यारे थाय? भाई! तुं माने छो एम नथी बापु! धर्म तो तारो पोतानो स्व- भाव छे अने ते अंतर-आलंबनना पुरुषार्थ वडे पोताना स्वकाळे प्रगट थाय छे; मतलब के ते आहार-पाणी ईत्यादि परना कारणे थतो नथी. जो तो खरो! नरकमां आहारनो एक कण न मळे, पाणीनुं एक बुंद न मळे, जन्मथी ज सोळ-सोळ रोग होय तोपण कोई नारकी जीव अंतर-आलंबनमां उतरी जईने समकित (धर्म) प्रगट करी ले छे. माटे परथी थाय ए जवा दे, ने स्वमां सावधान थई जा.
ओहो! प्रत्येक आत्मा अनंतगुणथी भरेलो भगवान चैतन्य-ईश्वर छे, ने प्रत्येक रजकण पण पोताना अनंतगुणथी भरेलो जडेश्वर छे. भगवान आत्मा अने परमाणुमां जेटला प्रत्येकमां जे गुणो छे प्रत्येक समये तेटली गुणोनी पर्याय थवानो स्वकाळ छे; जे समये जे थवानी होय ते धारावाही थाय ज छे ए वस्तुनुं स्वरूप छे. कर्ममां उदय, उदीरणा, उत्कर्षण, अपकर्षण ईत्यादि एना स्वकाळे थाय छे, एमां जीवना परिणाम निमित्त हो, पण जीवने लईने कर्मनी अवस्था थाय छे एम क्यां छे? कर्मनुं कार्य कर्म करे ने जीवनुं जीव; कोई कोईना कर्ता-हर्ता नथी, कह्युं ने के बन्ने ईश्वर छे- एक जडेश्वर ने एक चैतन्य-ईश्वर. भाई! आ स्वकाळनी वात जेने बेसे तेना जन्म-मरणनो अंत आवी जाय एवी आ वात छे. कह्युं ने के -ज्ञानी स्वकाळथी सत्पणुं प्रकाशतो थको अनेकान्त वडे पोताने जिवाडे छे-नाश थवा देतो नथी. आवी वात छे.
हवे दसमो बोलः ‘वळी ज्यारे ते ज्ञानमात्र भाव पदार्थोना आलंबन काळे ज (-मात्र ज्ञेय पदार्थोने जाणवा वखते ज) ज्ञाननुं सत्पणुं मानीने-अंगीकार करीने पोतानो नाश करे छे, त्यारे (ते ज्ञानमात्र भावनुं) परकाळथी (-ज्ञेयना काळथी) असत्पणुं प्रकाशतो थको अनेकान्त ज तेने पोतानो नाश करवा देतो नथी.’
शुं कहे छे? के अज्ञानी जीव निमित्तरूप पदार्थोना आलंबन काळे ज अर्थात् परकाळथी ज पोतानुं ज्ञाननुं सत्पणुं-होवापणुं माने छे. अहा! हुं ज्ञानस्वरूप ज छुं, ने वर्तमान ज्ञाननी दशा जे प्रगट थई छे ते एनो स्वकाळ छे, ते पोताथी थई छे-एम न मानतां, जाणवामां आवता निमित्तथी-परकाळथी ज मारा ज्ञाननुं परिणमन थई रह्युं छे एम अज्ञानी माने छे, अने एम विपरीत मानतो थको ते पोतानो नाश