Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३९६ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० करे छे. अहा! विकारी पर्याये थाय तेय स्वाधीनपणे ने निर्विकार परिणमे तोय स्वाधीनपणे थाय छे, पराधीनपणे नहि-आवी स्वतंत्रता छे तोपण अज्ञानी निमित्तना काळथी ज -परकाळथी ज ज्ञाननुं सत्पणुं मानीने नाश पामे छे. नाश पामे छे एटले शुं? के मिथ्यात्वरूप परिणमीने चतुर्गति-परिभ्रमण करे छे.

त्यारे धर्मी-ज्ञानी पुरुष ते ज्ञानमात्र भावनुं परकाळथी असत्पणुं प्रकाशतो थको अर्थात् सामे जे निमित्त छे एनी अवस्थाथी मारी ज्ञाननी दशा नथी, पण मारी ज्ञानदशा ते एनो स्वकाळ छे एम मानतो थको अनेकान्त द्वारा पोताने नाश पामवा देतो नथी. अहा! ज्ञान ने आनंद आदि जे दशा प्रगट छे ते स्वकाळे सत् छे, ने परकाळथी- परद्रव्यना परिणामथी असत् छे-आवुं अनेकान्त धर्मात्माने जिवाडे छे-नाश पामवा देतुं नथी. सामे निमित्तनी दशा जे छे ते आ आत्मानी अपेक्षाए परकाळ छे, ने ते परकाळथी हुं असत् छुं आवो अनेकान्त धर्मात्माने नाश थवा देतो नथी अर्थात् अनेकान्तद्रष्टि वडे धर्मात्मा पोताना निर्मळ ज्ञान-श्रद्धान-शान्तिना परिणामने प्राप्त करी ले छे. समजाणुं कांई....! भाई! आ समज्या विना तारां व्रत, तप, भक्ति ने पूजा ईत्यादि बाह्य क्रियाकांडनो सघळो आडंबर फोगट छे. तुं माने के में दुकान, धंधा-व्यापार ने बायडी-छोकरांनो त्याग कर्यो छे, पण अंदरमां मिथ्यात्वना शल्यनो त्याग थया विना शुं त्याग्युं? कांई ज नहि. (एक आत्मा त्याग्यो छे.) आवी वात!

बोल अगियारमोः- ‘ज्यारे आ ज्ञानमात्र भाव, जाणवामां आवता एवा परभावोना परिणमनने लीधे ज्ञायकस्वभावने परभावपणे मानीने-अंगीकार करीने नाश पामे छे, त्यारे (ते ज्ञानमात्र भावनुं) स्वभावथी सत्पणुं प्रकाशतो थको अनेकान्त ज तेने जिवाडे छे-नाश पामवा देतो नथी.’

शुं कहे छे? के भगवान आत्मा एक ज्ञायकभावस्वरूप छे. जाणवुं.... जाणवुं.... जाणवुं ते एनो स्वभाव छे. अहा! एम न मानतां आ जे परद्रव्यना भावो एना जाणवामां आवे छे ते-पणे-परभावपणे हुं थई गयो एम अज्ञानी माने छे. परभावने जाणवा काळे ज्ञान तो एक ज्ञायकभावपणे ज छे, तोपण जाणे परभावपणे थई गयुं छे एम अज्ञानीने भ्रम थई गयो होय छे, केमके अंदर एक ज्ञायकस्वभाव पोते छे एनुं एने लक्ष नथी, परभाव उपर ज एनुं लक्ष छे. अहा! परभावने लईने मारुं परिणमन थयुं छे एम पोताने परभावरूप करतो अज्ञानी पोताना एक ज्ञायकभावनो अभाव करीने पोतानो नाश करे छे.

त्यारे धर्मी पुरुषनुं अंदर पूर्ण एक ज्ञायकभाव-स्वभावभाव उपर लक्ष होवाथी, आ परभावने जाणनारुं ज्ञान मारा ज्ञायकभावथी ज छे एम स्वभावथी सत्पणुं प्रकाशतो ते अनेकान्तद्रष्टि वडे पोताने जिवाडे छे- नाश पामवा देतो नथी. परभावने जाणतां ज्ञान