Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परिशिष्टः ३९७

परभावरूप थई गयुं छे एम नहि, पण निज स्वभावभावरूप-ज्ञानभावरूप ज रह्युं छे एम पोतानी आत्मलीलाने यथार्थ जाणतो ज्ञानी पोताना जीवतरने सुरक्षित टकावी राखे छे. अहा! आत्मामां अनंतगुणोना अस्तित्वमय ज वर्तमान भावनुं परिणमन थाय छे ए आत्मलीला छे. मारा भावथी मारी पर्याय छे. परभावथी नथी-आवुं अनेकान्त जेवुं छे तेवुं आत्मानुं जीवन टकावी राखे छे. अहो! अनेकान्त परम अमृत छे.

बारमो बोलः ‘वळी ज्यारे ते ज्ञानमात्र भाव “सर्व भावो हुं ज छुं” एम परभावने ज्ञायकभावपणे मानीने-अंगीकार करीने पोतानो नाश करे छे, त्यारे (ते ज्ञानमात्र भावनुं) परभावथी असत्पणुं प्रकाशतो थको अनेकान्त ज तेने पोतानो नाश करवा देतो नथी.’

जुओ, आत्मा वस्तु छे ते ज्ञानस्वभावमात्र छे. परंतु अज्ञानी जगतना जे बधा जड-चेतन भावो छे एना पर लक्ष जतां आ परभावो हुं छुं, ए परभावोने लईने मारो वर्तमान पर्यायभाव छे-एम माने छे. जेमके- आ शास्त्र सांभळतां, पहेलां ज्ञाननी दशा आ प्रमाणे नहोती अने हवे नवी थई त्यां एने एम थई जाय छे के आ ज्ञाननी पर्याय शास्त्र सांभळवामांथी आवी, परंतु अंदर पोताना भावमांथी (ज्ञानभावमांथी) आवी छे एम ते कबुलतो नथी. अहाहा......! ज्ञानसामान्यमांथी ते विशेष-ज्ञानदशा वर्तमान आवी छे एम न मानतां, जे परभावनुं लक्ष छे ते परभावमांथी ते आवी छे एम मानतो थको ते परभावने पोतारूप करे छे. आम परभावने निजभाव-रूप करतो थको अज्ञानी पोतानो-पोताना स्वभावनो नाश करे छे.

अहाहा....! भगवान आत्मा चैतन्यमूर्ति प्रभु अंदर एक स्वभावभाव- ज्ञानभावथी भरेलो पदार्थ छे. गमे ते क्षेत्र, गमे ते काळ ने गमे ते परभावोने देखतो होय छतां ते काळे तेनी जाणवारूप दशा पोताना भावमांथी-ज्ञानभावमांथी आवी छे. परंतु एम न मानतां आ परभावमांथी मारी जाणवानी दशा थई छे एम अज्ञानी माने छे अने ए रीते ते पोताने नाश करे छे. लोको कहे छे ने के-बहार पर्यटन खूब करीए तो ज्ञाननो विकास थाय. धूळेय न थाय सांभळने. बहारमांथी-परभावमांथी तारुं ज्ञान आवे छे एम छे ज नहि. समये समये पोताना भावमांथी-ज्ञानभावमांथी ज ज्ञानदशा आवे छे. ज्ञाननी दशा ज्ञानभावमांथी, श्रद्धानी दशा श्रद्धाभावमांथी ने शांतिनी दशा अंदर शान्तिना भावमांथी आवे छे. आवुं वस्तुस्वरूप छे.

विकार पण जे अंदर थाय छे ते भावनी (-गुणनी) उलटी दशा छे. एय कांई निमित्तने लईने थाय छे एम नथी. जो के ते निमित्तना लक्षे-निमित्तने आधीन थई (स्वाधीनपणे) परिणमवारूप दशा छे (निमित्त आधीन करे छे एम नहि, पोते निमित्तने आधीन थाय छे), तोपण ते पोतानी दशा छे. क्रोधादिभावरूपे परिणमे छे