ते-रूप छुं अथवा ते मारा-रूप छे एम मानतो अज्ञानी दुःखी दुःखी थईने घोर संसारमां ज परिभ्रमे छे.
हवे तेरमो बोलः- ‘ज्यारे आ ज्ञानमात्र भाव अनित्य ज्ञानविशेषो वडे पोतानुं नित्य ज्ञानसामान्य खंडित थयुं मानीने नाश पामे छे, त्यारे (ते ज्ञानमात्र भावनुं) ज्ञानसामान्यरूपथी नित्यपणुं प्रकाशतो थको अनेकान्त ज तेने जिवाडे छे-नाश पामवा देतो नथी.’
जुओ, वस्तु द्रव्य सामान्यथी नित्य छे, ने विशेष-पर्याय अपेक्षाए अनित्य छे. पर्याय समये समये बदले-पलटे छे ने! तेथी पर्यायथी-विशेषथी अनित्य छे. आत्मा पण ज्ञानसामान्यपणे नित्य छे अने पर्याय-विशेषथी अनित्य छे-हवे त्यां अनित्य पर्यायने जोईने पोतानुं नित्य सामान्य-ज्ञानसामान्य खंडित थई गयुं. अर्थात् अरेरे! मारे तो त्रिकाळ एकरूप रहेवुं जोईए एने बदले आ पलटना क्यांथी? अरे! हुं खंडित थई गयो, मारो आखो नाश थई गयो-एम अज्ञानी माने छे. पलटवुं ए तो पर्यायनो धर्म छे, ने ते वस्तुनुं-आत्मानुं सहज छे, पण एने नहि मानतां मारी एकरूपता खंडित थई गई, माटे ए (-पर्याय) हुं नहि एम पोताना अनित्य भावनो ईन्कार करीने अज्ञानी पोतानो नाश करे छे.
वस्तुपणे ध्रुव नित्य होवा छतां आत्मा पर्याये अनित्य छे. परंतु अनित्यने नहि ईच्छनारा, अनित्य वडे नित्य खंडखंड थई जाय छे एम मानीने अनित्यने छोडी दे छे. आ रीते पर्यायनो अभाव करीने अज्ञानी पोतानो नाश करे छे. अज्ञानीने एकांते नित्यपणानो-एकपणानो अध्यास छे. ते बदलती पर्यायने जोईने आ हुं नहि एम पर्यायने छोडी दईने ते पोतानो नाश करे छे. (केम के पर्यायरहित कोई द्रव्य होतुं ज नथी).
अरे भाई! अवस्थापणे वस्तु पलटती न होय तो अज्ञाननो नाश करी ज्ञान प्रगट करवानुं क्यां रह्युं? दुःखथी मुक्त थाओ-भगवानना एवा उपदेशनी सार्थकता शुं रही? दुःखथी मुक्त थाओ-एनो अर्थ ज ए छे के जीव वर्तमान अवस्थामां दुःखी छे ने ते पलटीने परमसुखनी दशारूप थई शके छे. अहाहा.....! पोते अनंत आनंदनो कंद प्रभु छे एम स्वीकारी अंर्तद्रष्टि करतां ज दुःख-मलिनता जे छे ते पलटी जाय छे. आम पर्यायथी पलटवुं ए तो द्रव्यनुं-पोतानुं सहज स्वरूप छे भाई! पण पलटती पर्यायने जोईने, हुं खंडखंड थई गयो एम मानी, आ अनित्य पर्याय हुं नहि एम अनित्यने छोडी दईने अज्ञानी पोतानो नाश करे छे, केमके वस्तुनुं तो सहज ज द्रव्य-पर्याय स्वरूप छे. अहीं अनित्य (पर्याय) हुं नहि एम माननार पोतानो नाश करे छे एम कहीने पर्यायनो आश्रय कराववो छे एम वात नथी. पर्यायनो