Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४००ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० आश्रय तो एने अनादिथी छे ने तेथी तो ते मिथ्याद्रष्टि छे. अहीं तो वस्तु सहज ज द्रव्य-पर्यायस्वरूप छे एम ज्ञान करावी तेने द्रव्य-सामान्यनो-नित्यपणानो एकान्त छोडाववानी वात छे. समजाणुं कांई....? भाई! निश्चयद्रष्टिवंत-द्रव्यद्रष्टिवंतने पण पर्यायनुं यथातथ्य ज्ञान होय छे. (ते पर्यायनो अभाव ईच्छतो नथी.) .

ज्यारे परथी जुदाई (भेदविज्ञान) करवी होय त्यारे पोताना द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणे निश्चय आत्मा छे, ने पर ते व्यवहार कह्यो. हवे ज्यारे अंतरंग प्रयोजन (सम्यग्दर्शन आदि प्रयोजन) सिद्ध करवुं होय त्यारे द्रव्य-पर्याय बेमांथी मुख्य ते निश्चय अने गौण ते व्यवहार एम कह्युं. निश्चय ते मुख्य एम नहि केमके निश्चय तो द्रव्य-गुण ने पर्याय त्रणे छे. सम्यग्दर्शन आदि प्रयोजन मुख्य एवा त्रिकाळी ध्रुव एक द्रव्यना आश्रये थाय छे माटे द्रव्य ते निश्चय अने पर्यायने गौण करी व्यवहार कही. जुओ गुणभेद ने पर्यायभेद ते गौण छे, अभाव नहि. समयसार गाथा ११ मां ज्यां व्यवहार अभूतार्थ-असत्यार्थ कह्यो छे त्यां ते गौण छे एम आशय छे. पर्यायने गौण करीने असत्य कही अने द्रव्यने मुख्य करीने सत्य कह्युं छे; बाकी छे तो बेय सत्. भाई! बेय सत् छे एम ज्ञान करी, पर्यायने गौण-पेटामां राखी द्रव्यनो आश्रय करवानो छे, अन्यथा वस्तु हाथ नहि आवे अर्थात् द्रव्यद्रष्टि नहि थाय. जुओ, ११मी गाथामां परिणाममात्रने असत्य कह्या अने अहीं परिणामने (पर्यायने) निश्चय-सत्य कही; तो ज्यां जे अपेक्षा छे ते यथार्थ जाणवी जोईए. ज्यारे (एक आखी) सत्ता सिद्ध करवी होय त्यारे नित्य-अनित्य बन्ने निश्चय छे, पण ते जाणवा माटे छे, अने ज्यारे आश्रय करवो छे त्यारे पर्यायने गौण राखीने एक त्रिकाळी ध्रुव सामान्य-सामान्य द्रव्यनो ज आश्रय करवानो होई ते एक निश्चय छे, अने पर्याय व्यवहार. द्रव्यनो आश्रय करनार तो पर्याय छे. अज्ञानी तो पर्यायनो ज अभाव ईच्छे छे तेथी ते वडे ते पोतानो ज नाश करे छे.

कोईने थाय के-आ बधुं शें समजाय? तेने कहीए-भगवान! आ बधुं न समजाय एम न मान. तारामां तो केवळज्ञान लेवानी ताकात छे ने प्रभु! आ न समजाय ए (शल्य) काढी नाख. बाळकथीय समजाय ने मोटाथीय समजाय; निरोगीथी समजाय ने रोगीथीय समजाय. समजवानी अंदर रुचि थाय ते सौने आ समजाय एवी आ वात छे भाई! पोतानी वात छे ने! तो एनी (-पोतानी) रुचि करे तो समजाय ज.

अहा! आ शरीरथी जुदो अंदर पूर्णानंदनो नाथ परमात्मस्वरूप वस्तुए अनादि अनंत नित्य प्रभु छे, अने ते ज पर्यायमां पामर छे. बे थईने आखुं प्रमाण थाय छे. प्रमाण पण निश्चयना विषयने राखीने पर्यायने भेळवी (बन्नेनुं) ज्ञान करे छे, निश्चयने उडाडीने नहि. एम नथी के निश्चयनो निषेध करीने प्रमाण व्यवहारने