(पर्यायने) भेळवे छे. आवी वात! त्रिकाळी ध्रुव सामान्य एकरूप द्रव्य छे ते परम निश्चय छे. प्रमाण तेना स्वीकारपूर्वक जे कोई शुभाशुभ के शुद्ध पर्याय उत्पन्न थाय छे एनुं ज्ञान करे छे. भाई! द्रव्य-पर्यायस्वरूप जेवी वस्तुनी स्थिति छे तेवी धीरज अने शान्तिथी समजवी जोईए. पण अरे! अंतरनो मार्ग पाम्या विना बहारमां ने बहारमां ए क्रियाकांड करी करीने मरी गयो छे!
अहीं कहे छे- आ ज्ञानमात्र भाव अनित्य ज्ञान विशेषो वडे पोतानुं नित्य सामान्यज्ञान खंडित थई गयुं मानीने....... , आ हुं एकरूप रहेवा मागुं छुं एमां आ पलटती विशेष दशा शुं? ए हुं नहि-एम मानीने-पोतानी हयातीनो अज्ञानी नाश करे छे त्यारे धर्मी-ज्ञानी पुरुष पोताने ज्ञानसामान्यरूपथी नित्यपणे प्रकाशतो..... , अर्थात् पर्यायपणे विशेषता हो तो भले हो, हुं तो द्रव्यरूपथी त्रिकाळ ध्रुव एकरूप नित्य छुं, मारा नित्यपणाने कोई आंच नथी-एम पोताने नित्य-स्वरूपे प्रकाशतो थको अनेकान्तद्रष्टि वडे पोताने जिवित राखे छे- नाश पामवा देतो नथी. अहा! स्याद्वादी धर्मीने नित्य-अनित्यपणुं जेम छे तेम ज्ञानगोचर थाय छे. ते पर्यायमां अनित्यता देखतो होवा छतां वस्तुए हुं नित्य छुं-एम नित्यपणाना अंतर-अनुभव द्वारा ते पर्यायमां निराकुळ शान्तिने प्राप्त थाय छे. ल्यो, आवी झीणी वात छे.
चौदमो बोलः- ‘वळी ज्यारे ते ज्ञानमात्र भाव नित्य सामान्यनुं ग्रहण करवा माटे, अनित्य ज्ञानविशेषोना त्याग वडे पोतानो नाश करे छे (अर्थात् ज्ञानना विशेषोनो त्याग करीने पोताने नष्ट करे छे), त्यारे (ते ज्ञानमात्र भावनुं) ज्ञानविशेषरूपथी अनित्यपणुं प्रकाशतो थको अनेकान्त ज तेने पोतानो नाश करवा देतो नथी.’
शुं कीधुं आ? के ज्ञानमात्रवस्तु आत्मा तो नित्य-अनित्यरूप छे. परंतु अज्ञानी जीव नित्य ज्ञानसामान्यने ग्रहण करवा अनित्य ज्ञानविशेषोनो त्याग करी दे छे. एटले शुं? के क्रमे प्रगट थता आ अनित्य ज्ञानविशेषोथी मने शुं काम छे? मने तो एक नित्य ज्ञानसामान्यनुं ग्रहण ज ईष्ट छे एम मानीने अज्ञानी पोताना अनित्य ज्ञानविशेषोनो त्याग करी दे छे अने ए रीते ते पोतानो नाश करे छे. अनादिनुं पर्याय अपेक्षा क्षणे- क्षणे वस्तुनुं बदलवुं ए तो सहज छे, अनित्य ज्ञानविशेषोनुं थवुं ए ज्ञाननुं सहज छे, ज्ञाननो ए स्वभाव छे, अने ए बदलता अनित्य ज्ञानविशेषोमां ज नित्यनुं भान-ज्ञान थाय छे. आवी ज वस्तु-व्यवस्था छे छतां आ पलटता अनित्य ज्ञानविशेषोथी मने शुं छे? -एम मानीने अज्ञानी अनित्य ज्ञाननी दशाओना त्याग-अस्वीकार द्वारा पोतानो नाश करे छे. तेने नित्यपणुं पण रहेतुं नथी, केमके नित्यपणानुं ज्ञान करनारी पर्यायविशेषनो तो एणे त्याग करी दीधो छे. अहा! एक नित्य ज हुं छुं-एम मानीने अनित्य पर्यायने छोडे छे (ज्ञानमांथी काढी नाखे छे) तेने नित्य