Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3854 of 4199

 

परिशिष्टः ४०३

ज्ञान (-तिर्यंच एवा एकान्तवादीनुं ज्ञान) ‘सीदति’ नाश पामे छे;..........

जुओ, शुं कह्युं? के आत्मामां ज्ञान, आनंद इत्यादिनी अनेक पर्यायो थाय छे ते परज्ञेयोथी-निमित्तथी थाय छे एम जे माने छे तेनुं ज्ञान तो परज्ञेयो-निमित्त समस्तपणे पी गयुं छे. अहाहा.....! त्रिकाळी शुद्ध विज्ञानघन प्रभु आत्मा छे. तेनी वर्तमान ज्ञाननी दशा प्रगट थई छे ते कांई बाह्य निमित्तोने लईने थई छे एम नथी, पण अज्ञानीनी द्रष्टि बहार निमित्त उपर ज होवाथी, निमित्त जेवुं आवे तेवी अहीं ज्ञानमां पर्याय थाय एम ते माने छे. ते कहे छे- उपादानमां-उपादाननी पर्यायमां योग्यता तो अनेक प्रकारनी छे, पण सामे जेवुं निमित्त-बाह्य सामग्री आवे एवी पर्याय थई जाय छे. जेम के - माटीमां घडो थवानी योग्यता छे, साथे साथे ते ज काळे शकोरुं आदि थवानी अनेक योग्यताओ तेमां विद्यमान छे. माटीमांथी शुं थाय ए कुंभार पर निर्भर छे. कुंभारनी मरजी घडो करवानी होय तो घडो थाय, ने शकोरुं करवानी होय तो शकोरुं थाय. अहा! आवी जेनी मान्यता छे तेनुं ज्ञान तेनी बधी पर्यायो अहीं कहे छे, बाह्य निमित्त पी गयुं छे, केमके तेणे पोतानुं सघळुं परिणमन निमित्तने आधीन करी दीधुं छे. न्याय समजाय छे के नहि? अहा! पोतानी दशा पर-निमित्तने लईने थाय जेवुं निमित्त आवे तेम पोतामां थाय एम माननारनी बधी दशाओ निमित्त ज लई गयुं छे. परिपीतम् शब्द छे ने! मतलब के एने तो समस्तपणे निमित्त ज पी गयुं छे; केमके हुं ज्ञानस्वरूप छुं, ने वर्तमान ज्ञाननी दशा मारी माराथी थई छे एम एणे मान्युं नथी.

अज्ञानीनी दलील छे के-कपडामां कोट थवानी तो योग्यता छे, पण दरजी कोट करे त्यारे थाय ने? कपडुं पडयुं पडयुं कांई कोट थई जाय? माटे उपादानमां योग्यता होवा छतां निमित्त आवे तो कार्य-पर्याय थाय छे. आवा जीवो कपडामां कोट बनवानो स्वकाळ-पर्यायकाळ होय छे अने त्यारे दरजी निमित्त होय छे एम स्वीकारता नथी. (तेओ तो एक पर्यायना काळे बीजी पर्यायनी कल्पना करी निमित्तथी कार्यनी सिद्धि थवी चाहे छे).

अहा! त्रणकाळना जेटला समयो छे तेटली दरेक द्रव्यनी त्रणकाळनी पर्यायो छे. तेथी अहीं (आत्मामां) जे समये जे पर्याय छे ते समये ते ज छे, वळी सामे (बाह्य पदार्थोमां, निमित्तमां) पण जे समये जे निमित्त छे ते समये ते ज (प्रतिनियत ज) छे- आ तो आम केवळज्ञानमां भास्युं छे एनी वात छे. छतां अज्ञानी तर्क करे छे के- ‘आ काळे आ ज छे’ एम केवळज्ञानमां भास्युं छे ए तो बराबर छे, श्रुतज्ञानी-अल्पज्ञानीए तेनुं श्रद्धान पण करवुं जोईए, पण कर्तव्यना प्रसंगमां तो (थवायोग्य पर्याय प्रत्यक्ष नथी तेथी) अनियत मानीने निमित्तने जुटाववुं-मेळववुं