Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४०४ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० जोईए. जुओ आ अज्ञान! केवळीनी श्रद्धारहित छे ने! तेथी कुतर्क वडे निमित्तथी कार्य थवानुं स्थापे छे.

वळी कोई कहे छे- केवळज्ञानमां अनंता पदार्थोने जाणवानी शक्ति तो छे, पण सामे पदार्थ नथी तेथी केवळज्ञान तेने जाणतुं नथी, पदार्थ होय तो तेने जाणे, मतलब के पदार्थने लईने अहीं ज्ञान थाय छे. पण एनी आ मान्यता खोटी छे. अरे! केवळज्ञानमां समग्र लोकालोकने जाणवानुं सामर्थ्य छे एटलुं ज नहि, बीजा अनंत लोकालोक होय तो तेने पण जाणवानुं पोतानुं सहज सामर्थ्य छे. आ सामर्थ्य कांई लोकालोकने कारणे छे, बाह्य पदार्थोने लईने छे एम नथी. लोकालोक छे माटे केवळज्ञान तेने जाणे छे एम नथी.

प्रश्नः– हा, पण लोकालोक न होय तो ज्ञान क्यांथी थाय? माटे लोकालोक छे तो केवळज्ञान तेने जाणे छे.

उत्तरः– भाई! एम नथी बापु! लोकालोक छे, केवळज्ञान छे, अने केवळज्ञान एक समयमां लोकालोकने जाणे छे-ए बधुंय छे छतां लोकालोकने कारणे केवळज्ञान तेने जाणे छे एम नथी भाई! केवळज्ञान जे उत्पन्न थयुं छे ते तो पोतामां पोताथी थयुं छे. लोकालोकथी तो ते वास्तवमां असत् छे; एनाथी ए केम थाय?

आत्मामां जे समये जे पर्याय थवायोग्य छे ते पोताथी ज थाय छे. परंतु अज्ञानी एम न मानतां जे समये पर्याय थई ते निमित्त आव्युं ते वडे थई एम माने छे. ते पोतानी पर्यायनुं अस्तित्व परथी-निमित्तथी माने छे. प्रगट थयेली पर्याय ते ते समयनुं सत् छे एम नहि मानीने ते पोताना सत्ने उडाडे छे, निमित्तने हवाले करी दे छे. भाई! आ बधुं समजवुं पडशे हों. मूळ वातने समज्या विना शुभभावनी क्रिया लाभ मानीने कर्या करे पण एथी शुं? महान अशुभ जे मिथ्यात्व ते तो पडयुं छे अंदर. स्वथी थाय ने परथी न थाय एवुं जे वस्तुनुं स्वरूप छे ते यथार्थ समजमां लीधा विना ज्ञाननुं सम्यक् परिणमन थतुं नथी, सम्यक् श्रद्धान उदय पामतुं नथी.

आ घउंना लोटनी रोटली बने छे ने? ते कोने आधीन हशे? स्त्रीनी-बाईनी इच्छाने आधीन हशे, केम खरुं के नहि? भाई! ए लोटना अनंता रजकणो छे ते स्वयं रोटलीनी अवस्थापणे ते काळे परिणमी जाय छे. रजकणो स्वयं पलटीने रोटली- अवस्थाए थया ते रोटलीनो स्वकाळ छे, अने बाई वगेरे ते काळे बहार निमित्त होय छे बस एटलुं पण बाईनी ईच्छाने आधीन रोटली थई छे एम माननार रजकणोनी ए दशा ए काळे सत् छे एम मानतो नथी.