कोई वळी कहे छे -जिवित शरीरथी धर्म थाय. जिवित शरीर होय तो यथेच्छ बोलाय, धार्यां होय ते काम थाय. मडदाथी कांई थाय? अरे भाई! तुं शुं कहे छे आ? जीवना (एकक्षेत्रावगाह) संबंधथी शरीरने जिवित कहीए; बाकी शरीर क्यां जीव छे? ए हमणां पण मडदुं-अजीव ज छे. शरीरथी जीवने धर्म थाय एम तुं माने ए तो एना साथे एकत्वबुद्धिथी उत्पन्न नरी मूढता छे भाई! अरे! अज्ञानी जीवो निमित्त-परज्ञेयो साथे एकता करीने पोतानी व्यक्ति-प्रगटता जे आत्मभावरूप छे तेने छोडी दे छे. मारी पर्याय ने हुं माराथी छुं, पोताथी छुं एवी स्थिति छोडी देवाथी ज्ञान खाली-शून्य थई जाय छे.
अहा! आत्मा ज्ञानानंदस्वभावी प्रभु जेम स्वस्वरूपथी शोभित छे, तेम एनी वर्तमान ज्ञाननी दशा पोताथी शोभित छे. परज्ञेयोना-निमित्तना कारणे एनी वर्तमान दशा थई छे एम नथी. जेवां निमित्त आवे एवी अहीं - (-आत्मानी) दशा थाय एम माननारनुं (पशुनुं) ज्ञान, अहीं कहे छे, पोतानी प्रगटताने छोडी देवाथी शून्य -खाली थई गयेलुं, समस्तपणे पररूपमां ज विश्रांत एवुं ‘सीदति’ नाश पामे छे. हुं अने मारी दशा पर-निमित्तने लईने छे एम माननारनुं ज्ञान परमां विश्राम पाम्युं छे, अर्थात् परना आधारमां जई पडयुं छे. तेथी आ मारुं सत् छे एम तो रह्युं नहि. आ रीते ते नाश पामे छे. समजाय छे कांई....?
जुओ, बाह्य पदार्थनी-ज्ञेयोनी हयातीने लईने वर्तमान मारी (मारा ज्ञाननी) हयाती छे एम माननारने अहीं पशु कह्यो छे. छे ने अंदर? ‘पशोः ज्ञानं सीदति’ छे के नहि? छे. एम केम कह्युं? केमके विपरीत मान्यता-मिथ्यात्वनुं फळ पशुगति ने निगोद छे. भविष्यमां एवा जीवो निगोद जशे. आथी आचार्य अमृतचंद्रदेव अत्यंत अकारण करुणाथी कहे छे- अरे, पशु जेवा एकान्तवादी अज्ञानी! जो तुं एम माने छे के तारी अने परद्रव्यनी समये समये थती अवस्थानुं अस्तित्व परने लईने छे तो तुं पशु छे. अरेरे! तारी वर्तमान दशा पशु जेवी छे, ने भविष्यनी दशा पण निगोद थशे. (माटे मिथ्या मान्यताथी हठी जा). भाई! तारी हयाती परने लईने मानवा जतां तारुं आखुं सत्-अस्तित्व उडी जाय छे, एटले के अंदरमां आवरण आवे छे अने आवरण आवतां छती शक्तिनो घात थाय छे. अरे! छती शक्तिने-भगवान ज्ञानानंदस्वरूपने आळ आपवाथी एना ज्ञाननी दशा अत्यंत बेहोश-मूर्च्छित थई अक्षरना अनंतमा भागे एटले के निगोदनी दशारूप थई जशे. आवी वात! हवे आ तो सोनगढथी नवी नीकळी एम कही तुं एनी उपेक्षा करीश, वा ठेकडी करी अवज्ञा करीश तो तने भारे नुकशान छे भाई! आ सोनगढथी नवी नीकळी नथी, पण आ तो अनादि प्रवाहमां संतो-केवळीओ कहेता आव्या छे ते वात छे बापु!
अज्ञानी कहे छे -सामे घडो होय ते काळे घडानुं ज्ञान थाय छे माटे घडाने