४०८ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१०
जोयुं? ज्ञेयोना आधारे मारुं ज्ञान छे एम माननारनुं ज्ञान ज्ञेयो पी गयां, ज्ञान पोते कांई न रह्युं अर्थात् शून्य थई गयुं, नाश पाम्युं. मतलब के मिथ्याज्ञान थयुं.
‘स्याद्वादी तो एम माने छे के- ज्ञान पोताना स्वरूपथी तत्स्वरूप ज (-ज्ञानस्वरूप ज) छे, ज्ञेयाकार थवा छतां ज्ञानपणाने छोडतुं नथी. आवी यथार्थ अनेकान्त समजणने लीधे स्याद्वादीने ज्ञान (अर्थात् ज्ञानस्वरूप आत्मा) प्रगट प्रकाशे छे.’
जुओ, अनेकान्तमय वस्तुने जाणनार स्याद्वादी केवुं माने छे? के ज्ञान पोताना स्वरूपथी तत्स्वरूप ज छे. ज्ञेयोने जाणवापणे थयेलुं ज्ञान ज्ञानस्वरूप ज छे; ज्ञेयस्वरूप थयुं नथी, पण ज्ञेयोथी पृथक् ज्ञानस्वरूप ज रह्युं छे. अहा! आवी यथार्थ समजणने लीधे स्याद्वादीने ज्ञानस्वरूप आत्मा प्रगट प्रकाशे छे, जणाय छे.
आ प्रमाणे स्वरूपथी तत्पणानो भंग कह्यो.
हवे बीजा भंगना कळशरूपे काव्य कहेवामां आवे छे.ः-
‘पशुः’ पशु अर्थात् सर्वथा एकान्तवादी अज्ञानी, ‘विश्वं ज्ञानं इति प्रतर्क्य’ विश्व ज्ञान छे (अर्थात् सर्व ज्ञेयपदार्थो आत्मा छे) -एम विचारीने ‘सकलं स्वतत्त्व–आशया दष्ट्वा’ सर्वने (-समस्त विश्वने) निजतत्त्वनी आशाथी देखीने ‘विश्वमयः भूत्वा’ विश्वमय (समस्त ज्ञेयपदार्थमय) थईने, ‘पशुः इव स्वच्छन्दम् आचेष्टते’ ढोरनी माफक स्वच्छंदपणे चेष्टा करे छे-वर्ते छे;........
अहाहा.....! शुं कहे छे? आ शरीर, मन, वाणी इत्यादिथी मांडीने छ द्रव्यमय आखुं जगत ज्ञेय छे, अने भगवान आत्मा ज्ञानस्वरूप-चैतन्यस्वरूप प्रभु भिन्न वस्तु छे. बेय भिन्न भिन्न छे. छतां ए चीजो हुं छुं, ते मारी छे, अने तेने हुं करुं छुं एम माननार ए परज्ञेयोने पोतापणे माने छे, ते मिथ्याद्रष्टि पशु छे, अज्ञानी छे- एम कहे छे.
भाई! सर्वज्ञ परमात्मानी दिव्य वाणीमां आवेली आ वात छे. शुं? के आत्मा चैतन्यबिंब प्रभु सदा ज्ञानानंदस्वरूप छे. एमां आ दया, दान, व्रत, भक्ति आदिना पुण्यभाव नथी, ने हिंसा, जूठ, चोरी, विषयवासना इत्यादि पापभाव पण नथी; वळी आ शरीर, इन्द्रिय, वाणी, मन, धन, परिजन इत्यादि जगतना पदार्थ पण एमां नथी. अहा! ए सर्व पदार्थ एना ज्ञानमां जणावायोग्य परज्ञेय छे. अहा! ए परज्ञेयो ज्ञानमां जणाय छतां एम नथी के ज्ञान पोतानुं ज्ञानस्वरूप छोडीने ज्ञेयरूप थई जाय. तथा ज्ञेयो पोतानुं स्वरूप छोडीने ज्ञानरूप थई जाय. आ वस्तुस्थिति छे. छतां जाणवामां आवता ए ज्ञेयो बधा हुं छुं, तेओ मारा छे, तेओने हुं करुं छु