Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3862 of 4199

 

परिशिष्टः ४११

छुं. परथी हुं नथी माटे मारां ज्ञान, दर्शन, सुख, समकित, शान्ति स्वमां स्वथी थाय, परथी न थाय. ल्यो, आवी वस्तु देखे ते डाह्यो-विचक्षण पुरुष छे. बाकी दुनियानां काम करनारा, दुनियानो उद्धार करवा नीकळेला दुनियाना (कहेवाता) डाह्या तो दुनियामां रखडवा क्यांय ऊंडा (नरकादिमां) जशे. ते डाह्या नथी भाई! ते तो मूढ, पागल छे. तेमने अहीं कळशमां पशु कह्या छे. आ तो जेने अंदर आत्मज्ञान थयुं छे ते डाह्या छे, केमके ते फाया (फाव्या) छे, ते तरी जशे. समजाय छे कांई...?

अहा! मारो चैतन्यमहाप्रभु मारा स्वरूपथी-ज्ञानस्वरूपथी तत् छे, ने परथी अतत् छे. भले ज्ञेयनुं ज्ञान थाय, पण ए ज्ञेयनुं ज्ञान नथी, ज्ञाननुं ज ज्ञान छे. आम स्व-रूपथी तत्पणुं ने पररूपथी अतत्पणुं मानतो होवाथी, स्याद्वादी, ज्ञेयोनुं ज्ञान- जाणवापणुं थवा काळे, ज्ञाननी रचना पोताथी थई छे एम जाणतो विश्वरूप नहि एवा निजतत्त्वने अनुभवे छे. जेटलुं विश्व छे तेनुं अहीं ज्ञान थाय ए तो आत्मानो निज स्वभाव छे. ‘विश्वथी भिन्न एवा अने विश्वथी रचायेलुं होवा छतां विश्वरूप नहि एवा पोताना निजतत्त्वने अनुभवे छे’ -एटले शुं? के निज ज्ञायक तत्त्व छे ते विश्वथी भिन्न ज छे; अने विश्वने जाणवारूप एनी ज्ञानदशा थई तेमां विश्व निमित्त छे तेथी ते विश्वथी रचायेलुं होवा छतां ज्ञान ज्ञानरूप ज छे, विश्वरूप थयुं नथी. ल्यो, आवुं जाणतो स्याद्वादी विश्वरूप नहि एवा निजतत्त्वने अनुभवे छे. विश्वने जाणे छे, छतां विश्वरूपे थतो नथी. व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान छे एम आव्युं ने १२ मी गाथामां? ल्यो, ए आ वात अहीं छे. अहा! आवी यथार्थ द्रष्टि जेने थाय छे ते स्व-आश्रयमां जई संसार तरी जाय छे ने पूर्णानंदने पामे छे. आ धर्म ने धर्मनुं फळ छे.

* कळश २४९ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘एकान्तवादी एम माने छे के -विश्व (-समस्त वस्तुओ) ज्ञानरूप अर्थात् पोतारूप छे. आ रीते पोताने अने विश्वने अभिन्न मानीने, पोताने विश्वमय मानीने, एकान्तवादी, ढोरनी जेम हेय-उपादेयना विवेक विना सर्वत्र स्वच्छंदपणे प्रवर्ते छे.’

जोयुं? एकान्तवादी, ज्ञानमां परज्ञेय देखीने, आ परज्ञेय न होय तो मारुं ज्ञान केम होय? -एम विचारतो-मानतो थको परज्ञेयोरूप-विश्वरूप करे छे. भगवान आत्मा स्वभावथी ज्ञानानंदस्वरूप होवा छतां रागादि परवस्तु साथे एकपणुं मानतो पोताने विश्वमय -सर्वरूप मानी एकान्ती ढोरनी जेम हेय-उपादेयना विवेक विना सर्वत्र स्वच्छंदपणे प्रवर्ते छे. निमित्तथी-परथी मारामां कार्य थाय, ने शुभरागथी धर्म थाय एम माननार, आ रागादि पर हेय छे, ने निज ज्ञायकतत्त्व एक उपादेय छे-एवा हेय-उपादेयना विवेक विना स्वच्छंदपणे रागादिना ज आचरणरूप प्रवर्ते छे. ते अपार घोर संसारमां परिभ्रमे छे. परंतु.....