जुओ, अरिसामां सामे कोलसो होय तो कोलसो जणाय, अने सामे वींछी होय तो वींछी जणाय. परंतु त्यां अरिसामां जे जणाय छे ते (खरेखर) कोलसो के वींछी नथी, ए तो अरिसानी ज अवस्था छे. हवे ते अवस्थामांथी कोलसो ने वींछी काढी नाखवा मागे तो अरिसानी अवस्थानो ज नाश थई जाय, अने तेम थतां अरिसानो नाश थई जाय. तेम आ आत्मा चैतन्य-अरिसो छे. ते द्रव्यरूपथी कायम एकरूप रहीने, तेनी एक समयनी ज्ञाननी पर्याय, परज्ञेयोने अडया विना ज, तेनो आश्रय लीधा विना ज अनेक ज्ञेयोने जाणवापणे थाय छे. सामे परज्ञेयो छे माटे ज्ञेयाकारे एनुं ज्ञान थाय छे एम नथी; ए तो एनी ज्ञाननी पर्यायनो एवडो स्वभाव छे के अनंता ज्ञेयाकारोना ज्ञाननुं परिणमन पोतानुं पोतामां पोताथी थाय छे. अज्ञानी तेने कलंक मानी धोई नाखवा मागे छे. ते विचारे छे-हुं तो एकरूप छुं, तेमां आ अनेकता केवी? आ ज्ञाननी दशामां परमाणु ने निगोदादि बीजा जीवो जणाय छे ते शुं? आ तो कलंक छे. एम मानी ते ज्ञेयाकारोने दूर करवानी ईच्छा वडे ते पोतानी सत्तानो नाश करे छे; अहा! अनंतना जाणवापणे परिणमवुं ए पोतानी पर्यायनो सहज भाव छे एम ते जाणतो नथी!
आ तो धीरानां काम बापु! धर्म कांई बहारमां भर्यो नथी के बहारथी मळी जाय.
प्रश्नः– पण आप धर्म केम थाय एनी वात करोने? आ बधुं शुं मांडयुं छे? उत्तरः– आ धर्मनी (वात) तो मांडी छे भाई! धर्म करनारो, एनुं होवापणुं, एनुं द्रव्य, एनुं क्षेत्र, एनो काळ (पर्याय) अने एना भाव-स्वभाव-ईत्यादिनुं शुं स्वरूप छे ए तो नक्की करीश के नहि? एम ने एम धर्म क्यां थशे भाई! कोना आश्रये धर्म थाय ए जाण्या विना धर्म केम प्रगट करीश? आ दया-दान ने भक्ति-पूजाना परिणाम ए कांई धर्म नथी, ए तो बधो विकल्प-राग छे. स्वना आश्रयमां गया विना भवनो अभाव करवाना बीजरूप सम्यग्दर्शन त्रणकाळमां थतुं नथी.
धर्मना स्वरूपनी भाई! तने खबर नथी. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप जे निर्मळ रत्नत्रय जेने निश्चय मोक्षमार्ग कहीए ते धर्म छे. अष्टपाहुडमां तेने ‘अक्षय अमेय’ कह्यो छे. अहा! शुद्ध एक ज्ञायकना अवलंबने प्रगट थयेली धर्मनी पर्यायने कदी नाश न थाय तेवी अक्षय अने अनंत सामर्थ्यवाळी कही छे. अहा! एकरूप ज्ञायकनुं जेमां ज्ञान थयुं तेने ‘अक्षय अमेव’ कही, केमके ते पर्यायमां अनंतने जाणवानी ताकात पोताथी ज छे. तेवी रीते एक शुद्ध ज्ञायकनुं जेमां श्रद्धान थयुं ते पर्याय पण ‘अक्षय अमेय’ छे, केमके अनंतने श्रद्धवानी (निश्चयथी अनंत सामर्थ्यवान एवा पोताने) श्रद्धवानी एनी ताकात पोताने लईने छे. तेवी रीते चारित्रनी, आनंदनी, वीर्यनी पर्याय ‘अक्षय अमेय’ छे. अक्षय अनंत सामर्थ्यवाळा आत्मतत्त्वनो, शुद्ध एक ज्ञायकनो आश्रय करे छे तेथी ते पर्यायोने पण ‘अक्षय अमेय’ कही छे. आम अनंत