Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४१६ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० गुणनी एक समयमां अनंत पर्याय अक्षय अमेय छे. अहाहा....! जेम वस्तु त्रिकाळी शुद्ध ज्ञायक तत्त्व अक्षय अमेय छे तेम तेना आश्रये प्रगट थयेली (निर्मळ) पर्यायो अक्षय अमेय छे. ल्यो, आवो (अलौकिक) धर्म! अरे! लोकोने रागथी धर्म मनाववो छे! पण रागने तो परनो आश्रय छे, ने ते वडे तो बंधन ज थाय छे. एनाथी धर्म केम थाय?

अहीं कहे छे- अज्ञानी एकाकारनी ईच्छाथी ज्ञानने-जो के ते ज्ञान अनेकाकारपणे प्रगट छे-तो पण इच्छतो नथी, अर्थात् ज्ञानने सर्वथा एकाकार मानीने, अनेकाकारे थयेला ज्ञानना ईन्कार द्वारा ते ज्ञाननो -पोतानो अभाव करे छे. शुं कीधुं? वस्तुपणे अनंतगुणनुं एकरूप पोते होवा छतां एक समयमां अनंतगुणनी अनंत पर्यायो छे, अने ते एक एक पर्यायमां अनंतता छे. ज्ञाननी एक पर्यायमां रागथी मांडी आखुं विश्व ज्ञेयपणे-निमित्तपणे छे. आवुं वस्तुनुं स्वरूप छे तेने नहि मानतां, एकांते एकपणाने ज इच्छतो ते अनंतपणाने तोडी नाखे छे. त्यां अनंतपणाने कलंक मानीने अनंतपणाने काढवा जतां पोतानी पर्यायना नाश द्वारा द्रव्यनो नाश करे छे. एटले शुं? के एनी पर्यायमां द्रव्यनुं यथार्थ स्वरूप हाथ आवतुं नथी.

एकने लक्षमां लेनार तो अनंतने जाणवावाळी पर्याय छे. पण अनंतने जाणे ए तो कलंक थई गयुं एम जाणी पर्यायने छोडी दे छे. तेने पोतानुं एकाकार द्रव्य पण छूटी जाय छे, हाथ लागतुं नथी. आम अज्ञानी पोताने सर्वथा एकाकार मानीने ज्ञाननो- पोतानो अभाव करे छे. समजाणुं कांई.....?

हवे कहे छे– ‘अनेकान्तवित्’ अने अनेकान्तनो जाणनार तो, ‘पर्यायैः तद्– अनेकतां परिमृशन’ पर्यायोथी ज्ञाननी अनेकता जाणतो (अनुभवतो) थको, ‘वैचिक्र्ये अपि अविचित्रतां उपगतं ज्ञानं’ विचित्र छतां अविचित्रताने प्राप्त (अर्थात् अनेकरूप छतां एकरूप) एवा ज्ञानने ‘स्वतः क्षालितं’ स्वतः क्षालित (स्वयमेव धोयेलुं-शुद्ध) ‘पश्यति’ अनुभवे छे.

शुं कहे छे? के एक पण छुं, अनेक पण छुं- एम स्याद्वाद वडे वस्तुना स्वरूपनो जाणनार अनेकान्तवादी तो पर्यायोथी ज्ञाननी अनेकता जाणतो थको अर्थात् एक समयमां अनंतगुणनी अनंतपर्याय, अने एक एक पर्यायमां अनंती ताकात-एम जाणतो थको, अनेकरूप छतां हुं द्रव्यरूपथी एकरूप ज छुं एम जाणी एकरूप एवा ज्ञानने स्वतःक्षालित-स्वतः शुद्ध जाणी एकने शुद्धने अनुभवे छे. आ अनेकपणानुं ज्ञान छे ते कलंक छे, मलिनता छे एम स्याद्वादी मानतो नथी, केमके अनंतने जाणवुं ए तो सहज वस्तुस्वभाव छे. ए तो एने गौण करी सहज शुद्ध वस्तुने-एकने