कोईने चालीस वर्षनी उंमरे पत्नी मरी जाय एटले खूब शोकातुर ने व्यग्र थाय. पछी विचार करे के आना करतां दस वरस पहेलां मरी गई होत तो सारुं; एम के त्यारे बीजी तो परणी शकात. जुओ, आ पहेलां तो स्त्रीने मारी, मारी एम कहीने तूटी जतो हतो, ने हवे कहे छे-दस वर्ष पहेलां मरी होत तो सारुं. जुओ, आ संसारनी विचित्रता! बधा आवा ने आवा मूढ भेगा थया छे. ए तो नियमसारमां एक कळशमां आव्युं छे के -मा, बाप, स्त्री, दीकरा-दीकरी, कुटुंब-परिवार ईत्यादि बधां धुतारानी टोळी छे. पेट भरवा बधां भेगां थयां छे; अनुकूळ होय त्यांसुधी साथ आपे, बाकी कोई सामुंय ना जुए. आ जोता नथी? घरमां प० वरसनी बा होय ने बिमार पडे, लकवो पडी जाय ने बिमारी लंबाय, घरमां कांई कामना न रहे एटले कोई सामुंय ना जुए; बधां एम ज विचारवा लागी जाय के बा क्यारे मरे. ल्यो, बा, बा, बा एम बाने जोईने हरख करनारां हवे विचारे छे के बा क्यारे मरे? आ तो बधुं जोयुं छे बापु! बधां स्वार्थना पूतळां छे भाई! अहीं कहे छे- परद्रव्योथी मने ठीक छे (वा एना अभावमां ठीक नथी) एम माननारा ठगाई गया छे; केमके परद्रव्य आ जीवस्वरूप पण नथी, ने संयोगथी स्थिर पण नथी.
अहा! पोतानी चैतन्यवस्तु पोताथी-स्वद्रव्यथी छे एना भान विना स्वद्रव्यने नहि देखतो परने लईने मने ठीक पडे छे, परथी मारुं होवापणुं छे एम अज्ञानी माने छे. हुं स्वद्रव्यथी संपूर्ण छुं एम जाणवा-अनुभववाने बदले, परवस्तुओ होय तो भरेलो देखाउं एम मानीने अज्ञानी पोताना भावथी खाली-शून्य थयो थको पोतानी अनादिअनंत नित्य स्वद्रव्यरूप चैतन्यसत्तानो नाश करे छे. वास्तवमां ते स्वद्रव्यनुं खून करनारो खूनी छे. समजाणुं कांई.....? हवे कहे छे-
‘स्याद्वादी तु’ अने स्याद्वादी तो, ‘स्वद्रव्य–अस्तितया निपुणं निरूप्य’ आत्माने स्वद्रव्यने अस्तिपणे निपुण रीते अवलोकतो होवाथी, ‘सद्यः समुन्मज्जता विशुद्ध–बोध– महसा पूर्णः भवन्’ तत्काळ प्रगट थता विशुद्ध ज्ञानप्रकाश वडे पूर्ण थतो थको ‘जीवति’ जीवे छे-नाश पामतो नथी.
अहाहा....! कहे छे-धर्मी-स्याद्वादी तो शुद्ध चैतन्यसत्तामय स्वद्रव्यथी हुं सत् छुं एम निपुणपणे आत्माने अवलोके छे. अहा! अस्तिपणे हुं पूर्ण छुं एम ज्यां अंदरमां पोताना ज्ञान-श्रद्धानमां स्वीकार थयो के तत्काळ अंदर अस्तिमांथी ज्ञान उछळ्युं, ने ते ज्ञाननी दशामां भास थयो के-अहो! आ पूर्ण ज्ञानघनवस्तु हुं माराथी ज अस्तिरूप छुं. आम तत्काळ प्रगट थता विशुद्ध ज्ञानप्रकाश वडे पूर्ण थतो थको स्याद्वादी जीवे छे अर्थात् पोतानुं जेवुं सत्यार्थ जीवन छे तेने जीवतुं राखे छे, निराकुळ आनंदथी धबकतुं राखे छे.