४२०ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१०
हुं परने लईने छुं, पर वडे मारुं सत्त्व छे-एम मानीने अज्ञानी पोताना त्रिकाळी स्वतत्त्वनो श्रद्धानमां नाश करे छे, ज्यारे धर्मी पुरुष, पोताना ज्ञानघनस्वरूप पूर्ण द्रव्यने स्वपणे अस्तिरूप स्वीकारीने आत्माने जेवो छे तेवो जीवतो-टकतो राखे छे. आवो मारग! आ तो एकलो न्यायनो मार्ग बापा! अरे! एणे अंदर ऊंडा उतरीने कोईदि’ विचार ज कर्यो नथी; बहारमां -स्त्री-पुत्र-परिवार, बाग-बंगला, धन ने परिजन ईत्यादिमां-रोकाईने के क्रियाकांडमां रोकाईने ए पोताना चैतन्यना सत्त्वरूप स्वद्रव्यने भूली गयो छे, जाणे शून्य थई गयो छे.
स्याद्वादी, हुं स्वद्रव्यपणे सत् छुं एम पोताने निपुणपणे अवलोके छे एटले शुं? के हुं एक ज्ञायकभावमात्र छुं एम पोताने अभेदपणे अनुभवे छे. हुं अने ज्ञायकभाव एम भेद पण एमां रहेतो नथी; अभेद तन्मात्र वस्तुनो अनुभव छे आवी झीणी वात!
समयसार कळशटीकामां आ कळशना अर्थमां विशेष सूक्ष्मताथी वात करी छे. त्यां निर्विकल्पमात्र अभेद वस्तु जेमां गुणभेद पण नहि तेने स्वद्रव्य कह्युं छे, आधारमात्र वस्तुनो प्रदेश अर्थात् असंख्य प्रदेशी होवा छतां एवा भेदथी रहित एकक्षेत्र तेने स्वक्षेत्र कह्युं छे, वस्तुमात्रनी मूळ अवस्था-आखी त्रिकाळस्थित एक वस्तु तेने स्वकाळ कह्यो छे अने वस्तुनी मूळनी सहज शक्ति तेने स्व-भाव कह्यो छे.
वळी त्यां ज सविकल्प भेदकल्पना करवी अर्थात् अखंड एक द्रव्यरूप वस्तुमां आ गुण ने आ गुणी एम भेद पाडवो तेने परद्रव्य कह्युं छे. शुं कीधुं? आ शरीरादि परद्रव्य तो परद्रव्य छे, अहीं तो एक ज चीजमां भेदकल्पना करवी तेने परद्रव्य कह्युं छे. वस्तुनो आधारभूत प्रदेश-तेमां सविकल्प भेदकल्पनाथी आ असंख्यात प्रदेश एम भेदने लक्षमां लेवुं ते परक्षेत्र थई गयुं. पंचास्तिकायमां असंख्य प्रदेशी आत्माने असंख्य प्रदेश होवा छतां एकप्रदेशी कह्यो छे, केमके असंख्य प्रदेश अभेद एकवस्तुपणे रहेला छे. तेने असंख्य प्रदेशनो भेद पाडी समजवुं ते परक्षेत्र छे. द्रव्यनी मूळ निर्विकल्प दशा अर्थात् एकरूप त्रिकाळी वस्तु ते स्वकाळ, तेमां एक समयनी अवस्थानो भेद पाडवो ते परकाळ छे. तेम द्रव्यनी मूळनी सहज शक्ति ते स्वभाव, तेमां आ ज्ञान, आ दर्शन एम भेद पाडवो ते परभाव छे.
टुंकमां त्रिकाळी एकरूप वस्तु ते स्वद्रव्य, ते ज स्वक्षेत्र, ते ज स्वकाळ अने ते ज स्वभाव छे. एमां जे भेदकल्पना करवामां आवे ते परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाळ अने परभाव छे. अहा! आवी भेदकल्पना रहित अभेद एक जे स्वद्रव्य वस्तु तेने स्याद्वादी निपुणपणे अवलोके छे-अनुभवे छे. शा वडे? निर्मळ भेदज्ञानना प्रकाश वडे. समजाणुं कांई....? ल्यो, आ धर्म अने आ साचुं जीवन.