Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3874 of 4199

 

परिशिष्टः ४२३

करे के-आ तो अमारा अंगत माणस छे. धूळेय अंगत नथी सांभळने हवे. ज्यां पदार्थो ज भिन्न भिन्न छे त्यां अंगत केवा? कोई कोईने अंगत नथी.

जेम कोई तंबु बांध्यो होय अने एनी एक खीली खसे तो त्यां जीवने भारे उचाट-खळभळाट थई जाय छे, तेम अज्ञानी, परवस्तुथी हुं छुं एवी दुर्वासनाथी वासित थयो थको, आत्माने-पोताने सर्वद्रव्यमय मानीने-सर्वद्रव्यो हुं ज छुं एम मानीने- जगतनी बधी सगवडताओ-अनुकूळताओमांथी एक ज्यां घटे त्यां हुं घटी गयो-खंडखंड थई गयो -एम भारे रोककळ करी मूके छे. स्त्री, पुत्र, धन, मात, पिता, इत्यादिनो वियोग थतां अज्ञानी भारे आकुळ-व्याकुळ थई आक्रन्द करे छे. तेने कहीए- भाई! तुं अंदर ज्ञानानंदस्वरूप भगवान छो ने! भगवान जेवो भगवान अंदर होवा छतां आ शुं करे छे? ताराथी जुदी पडी ए चीज तारी क्यांथी आवी? त्रण काळमां तारी नथी. मोहनो दारू पीने ज तुं आवी पागलनी चेष्टा करे छे. परद्रव्योमां तने स्वद्रव्यनो भ्रम छे ते भ्रमथी दूर था; ने स्वद्रव्यने अंगीकार कर.

अहीं कहे छे- पशु-एकांतवादी अज्ञानी आत्माने सर्वद्रव्यमय मानीने, स्वद्रव्यना भ्रमथी परद्रव्योमां विश्राम करे छे. मारो आधार परद्रव्यो ज छे एम परद्रव्योमां ज पोतानुं अस्तिपणुं स्थापे छे. हुं परद्रव्यथी असत् छुं, परद्रव्यथी नथी, भिन्न छुं- एम एने बेसतुं नथी. अंदर दुर्वासना घर करी गई छे ने! तेथी स्वद्रव्यनुं भिन्न अस्तित्व एने बेसतुं नथी, परमां ज ते आधार-विश्राम शोधे छे, अने ए रीते पोतानो नाश करे छे.

अहा! एकान्तवादी अज्ञानी परद्रव्यथी मने लाभ थाय एवी कुनयनी वासनाथी वासित छे. कदाचित् कुटुंब-परिवार, धन-लक्ष्मी ईत्यादि छोडी दे तो आ देव-गुरु- शास्त्रथी, आ मंदिर ने आ जिनबिंबथी मने लाभ छे, एनाथी मने ज्ञान थाय छे एम ते माने छे. आ पंचपरमेष्ठीनी भक्तिथी मने लाभ-धर्म थाय छे एम ते माने छे. अरे भाई! ए पंचपरमेष्ठी, ए जिनबिंब अने ए देव-गुरु-शास्त्र ए बधुंय परद्रव्य छे; एनाथी तने केम लाभ थाय? हवे आवी वात एने आकरी पडे छे. शुं थाय?

देव-गुरु-शास्त्र साचुं ज्ञान थवामां अवश्य निमित्त होय छे, तथापि ए निमित्तथी अहीं (-आत्मामां) साचुं ज्ञान थई जाय छे एम नथी. निमित्त हो, पण निमित्त (उपादानमां) कांई ज करतुं नथी. निमित्त (कार्य थवामां) अनुकूळ छे छतां नैमित्तिक भावने-अनुरूपने ते करे छे एम नथी. अहीं (आत्मामां) सम्यग्दर्शन प्रगट थाय छे तेमां निश्चयथी तो पोतानुं स्वद्रव्य ज (स्वद्रव्यनो आश्रय ज) कारण छे, ने व्यवहारे दर्शनमोहकर्मनो अभाव तेमां निमित्त छे. (देव-गुरु-शास्त्र बाह्य निमित्त छे). हवे त्यां आ अनुकूळ निमित्त छे माटे अनुरूप पर्याय (सम्यग्दर्शन) थई छे एम