Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परिशिष्टः ४२प

हुं एक पूर्ण शुद्धज्ञानघन चैतन्यस्वभावमय भगवान आत्मा ज छुं एम वर्ततो थको स्वद्रव्यनो ज आश्रय करे छे. ल्यो, आनुं नाम धर्म छे.

त्यारे कोई वळी कहे छे- दिगंबरमां जन्म्या एटले जैन तो थई गया, हवे चारित्र करवानुं रह्युं. अरे भगवान! आ तुं शुं कहे छे? जैन धर्मना वाडामां जन्म्यो एटले समकित छे एम क्यां छे? हवे निमित्तथी-परद्रव्यथी लाभ थाय ने दया, दान आदि शुभभावथी धर्म थाय एम माने त्यां सुधी तो नर्युं अज्ञान भर्युं छे बापु! परद्रव्य अने परभावथी भेदज्ञान कर्या विना समकित नहि, अने विना समकित चारित्र-धर्म पण नहि. धर्मात्मा परद्रव्यथी ने शुभरागथी लाभ-धर्म थाय एम कदी मानता नथी. ए तो परद्रव्यथी पोतानुं नास्तित्व मानीने एक स्वद्रव्यनो ज आश्रय करे छे. समजाणुं कांई....?

* कळश २प३ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘एकांतवादी आत्माने सर्वद्रव्यमय मानीने, आत्मामां जे परद्रव्य-अपेक्षाए नास्तित्व छे तेनो लोप करे छे;......’

वेदांत आदि जे बधाने (बधुं थईने) एक माने छे, वा जे परद्रव्यथी स्वद्रव्यने लाभ माने छे ते बधा परद्रव्यने ज आत्मा (स्वद्रव्य) माने छे. तेवा जीवो, आत्मामां जे परद्रव्य अपेक्षा नास्तित्व छे तेनो लोप करे छे, तेओ ऊंडे ऊंडे पण परद्रव्यने साधन मानी पोताना सत्ने खोई बेसे छे.

‘अने स्याद्वादी तो सर्व पदार्थोमां परद्रव्य-अपेक्षाए नास्तित्व मानीने निज द्रव्यमां रमे छे.’

जुओ, धर्मी-स्याद्वादी तो मारी पुंजी-मारी संपदा-लक्ष्मी ने मारुं साधन संपूर्ण मारी पासे छे अने ते हुं ज छुं, पर साधननी-परनी मने कांई ज जरूर-अपेक्षा नथी, परथी तो हुं नास्तिस्वरूप ज छुं एम मानतो थको स्वद्रव्यमां ज रमे छे.

प्रश्नः– जो एम छे तो, जो देव-गुरु आदि आत्माने तारी देता नथी तो नाहक तेमने शा माटे मानो छो? (एम के एमनी भक्ति-पूजा-स्तुति-विनय शा सारु करो छो?)

उत्तरः– भाई! ए तारी देशे एम तो कोण माने? अज्ञानी माने. ज्ञानीने तो परम वीतरागता-परम शुद्धता ज ईष्ट छे. पण शुं थाय? ज्यांसुधी पूर्ण वीतरागता थई नथी, कांईक अस्थिरता छे, त्यांसुधी धर्मीने देव-गुरु-शास्त्र प्रति विनय-भक्ति