Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परिशिष्टः ४२७

माननारा बधा मूढ छे भाई! शुं अंतरंगमां स्वक्षेत्रमां पवित्रता प्रगटे छे ए परक्षेत्रथी प्रगटे छे? एम छे नहि. घरमां रहे, चाहे तीर्थक्षेत्रे जाय, परक्षेत्रथी लाभ-धर्म थवो माननारने, परक्षेत्र मने ठीक छे एम माननारने, कोई लाभ थतो नथी. ते मिथ्यात्वथी ज बंधाय छे.

प्रश्नः– तो धर्मात्मा पण तीर्थक्षेत्रनी वंदनाए जाय छे? उत्तरः– ए तो एवो एने शुभभाव आवे छे. ते अस्थिरताजन्य धर्मानुराग छे, पण एनाथी पोताने धर्म थाय छे, पवित्रतानी वृद्धि थाय छे एम ते मानता नथी. समजाणुं कांई.....?

आत्मानुं-पोतानुं स्वक्षेत्र अंदरमां छे. अहा! जेटलामां पोतानुं ज्ञान अने आनंदस्वरूप रहेलुं छे ते एनुं स्वक्षेत्र छे अने त्यां ज एनुं होवापणुं छे. एना स्वक्षेत्रमां ज एना गुणो-धर्मो रहेला छे, परक्षेत्रमां एना कोई गुणो के पर्यायो नथी. आ शरीर, मन, वाणी, इन्द्रिय, बाग-बंगला, समोसरण के तीर्थक्षेत्र इत्यादि परक्षेत्रमां एना कोई गुण-पर्यायो नथी. अहा! आवुं बधुं ज पोतानुं अस्तिपणुं स्वक्षेत्रमां होवा छतां, भिन्नक्षेत्रे रहेला पदार्थो-ज्ञेयो ज्ञानमां जणातां हुं परक्षेत्रथी छुं, मने परक्षेत्रथी आनंद छे एम मूढ जीव माने छे. तेने कहीए -

अरे भाई! लौकिकमां पण कहे छे के- बीजाने घेर चैन न पडे, त्यां सरखी ऊंघ न आवे; ए तो घरे आवे त्यारे ज चैन पडे ने निरांते ऊंघ आवे. तो पछी भाई! आ तुं परक्षेत्रमां-शरीरादिमां क्यां गरी गयो? त्यां तने सुख नहि थाय, आनंद नहि मळे. आनंदनो भंडार अंदर तारुं स्वक्षेत्र छे, त्यां जा, तुं सुखी थईश. आ सिवाय परक्षेत्रमां तो भटकी-भटकीने महादुःखी थईश, नाश पामीश. अरे! स्वक्षेत्रने छोडी परक्षेत्रमां व्यापेलो छुं एम मानी अज्ञानी पोतानो नाश करे छे!

‘स्याद्वादवेदी पुनः’ अने स्याद्वादनो जाणनार तो, ‘स्वक्षेत्र–अस्तितया– निरुद्ध–रभसः’ स्वक्षेत्रथी अस्तिपणाने लीधे जेनो वेग रोकायेलो छे एवो थयो थको (अर्थात् स्वक्षेत्रमां वर्ततो थको), ‘आत्म–निखात–बोध्य–नियत–व्यापार–शक्तिः भवन्’ आत्मामां ज आकाररूप थयेलां ज्ञेयोमां निश्चित व्यापारनी शक्तिवाळो थईने, ‘तिष्ठति’ टके छे -जीवे छे (नष्ट थतो नथी).

शुं कीधुं? साचो धर्म पाम्यो छे ते स्याद्वादी तो एम जाणे छे के-परक्षेत्रनुं जाणपणुं मारी पर्यायमां थतुं होवा छतां हुं परमां जतो नथी, हुं तो मारामां ज रहेलो छुं ज्यां मारो सच्चिदानंद प्रभु बिराजे छे त्यां हुं मारामां ज छुं. आवुं मानतो धर्मी, जेनो वेग परक्षेत्रमां जतो अटकी गयो छे तेथी स्वक्षेत्रमां ज रहेतो थको आनंदना पाकने प्रगट अनुभवे छे.