४३२ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० ज्ञानस्य नाशं विदन्’ पूर्वालंबित ज्ञेय पदार्थोना नाश समये ज्ञाननो पण नाश जाणतो थको, ‘न किञ्चन अपि कलयन्’ ए रीते ज्ञानने कांई पण (वस्तु) नहि जाणतो थको (अर्थात् ज्ञानवस्तुनुं अस्तित्व ज नहि मानतो थको), ‘अत्यन्त तुच्छः’ अत्यंत तुच्छ थयो थको ‘सीदति एव’ नाश पामे छे;.......
जुओ, अज्ञानी, पूर्वालंबित एटले के पूर्वकाळमां लक्षमां लीधेला ज्ञेयपदार्थोना नाशना काळे ज्ञाननो पण नाश थयो एम जाणे छे. खरेखर तो समये समये परज्ञेयरूप पदार्थोनुं जे ज्ञान थाय छे ते ज्ञान पोतानुं पोतामां पोताथी थाय छे, परंतु एकांती- अज्ञानी परकाळथी (परज्ञेयथी) पोतामां स्वकाळ थयो मानतो थको पोतानी ज्ञाननी पर्यायनो नाश करे छे.
पोतामां परकाळने जाणवानी शक्ति पोतानी पोताथी छे. परकाळ-परज्ञेय बदलतां अहीं ज्ञाननी दशा बदलाणी ते स्वतः बदलाणी छे, परकाळने-परज्ञेयने लीधे बदलाणी छे एम नथी. जेमकेः ज्ञाननी पूर्वदशामां भगवानने (बिंबने) जोया; पछीना समये भगवाननी सन्मुखता न होतां ते संबंधी ज्ञाननी दशा न रही, बदलाणी. त्यां पूर्वकालीन ज्ञाननी दशा पोतानी पोताथी हती, कांई भगवानने लईने नहोती; ने वर्तमान बदलाणी ते पण पोतानी पोताथी बदलाणी छे, ते तेनो स्वकाळ छे, परज्ञेयना कारणे बदलाणी छे एम नथी. परंतु अज्ञानी आ मानतो नथी. ए तो आलंबितज्ञेयनो अभाव-नाश थतां पोताना ज्ञाननो नाश थयो एम मानतो थको पोताना अस्तित्वनो अभाव-नाश करे छे. समजाणुं कांई....?
अरिसामां अग्नि देखाय छे ते अरिसानी अवस्था छे. सामेथी अग्नि जती रहेतां अरिसामां पण अग्निसंबंधी अरिसानी पर्यायनो अभाव थाय छे, अरिसानी बीजी अवस्था प्रगट थाय छे. परंतु अग्नि जतां अरिसानी अवस्था ज नाश पामी गई एम अज्ञानी माने छे; ए रीते ते अरिसानो ज नाश करे (माने) छे. तेम पोताना ज्ञानमां परपदार्थ-परज्ञेय जाणवामां आवे छे ते पोताना आत्मानी अवस्था छे, ते परपदार्थने लईने नथी; वळी ते बदले छे ते पण पोतानी ज्ञाननी दशानो स्वकाळ छे, परपदार्थ बदली गयो माटे अहीं ज्ञाननी दशा बदली छे एम नथी. परंतु अज्ञानी, पोतानी ज्ञाननी दशा परालंबित मानतो थको परनो नाश थतां निरन्वय नाश पामी एम माने छे. आम पोतानी ज्ञानवस्तुने कांईपण नहि मानतो थको, अत्यंत तुच्छ थयो थको, अज्ञानी नाश पामे छे; पोताना आत्मानो ज (अभिप्रायमां) नाश करे छे.
अहाहा.....! पोते त्रिकाळ एक ज्ञायकस्वरूप छे. परज्ञेयनो जाणवारूप तेनी पूर्वकाळमां जे ज्ञाननी दशा हती ते पोतानी पोताथी ज हती, परज्ञेयने लईने नहि; तथा वर्तमान ते बदलीने अन्यज्ञेयने जाणवारूप थई ते पण पोतानी पोताथी ज छे,