Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3885 of 4199

 

४३४ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० देखी एकांतवादी पोताना ज्ञाननो नाश मानी अज्ञानी थयो थको आत्मानो नाश करे छे..........’

जोयुं? अज्ञानी परकाळथी-परज्ञेयथी पोतानुं ज्ञान होवानुं माने छे. तेथी परज्ञेय नाश पामतां पोतानुं ज्ञान नाश पामी गयुं एम मानी ते पोतानो नाश करे छे. ज्यारे,-

‘स्याद्वादी तो, ज्ञेय पदार्थो नष्ट थतां पण, पोतानुं अस्तित्व पोताना काळथी ज मानतो थको नष्ट थतो नथी.’

हुं एक त्रिकाळ ज्ञायकस्वरूप छुं, अने मारी दशा-पर्याय एक ज्ञायकना आश्रये मारामां थाय छे एम मानतो धर्मी आत्माने जेम छे तेम (ऊभो) राखे छे, नाश पामवा देतो नथी.

प्रश्नः– स्वकाळ एटले शुं? उत्तरः– परनी अपेक्षा पोतानी वर्तमान पर्यायने स्वकाळ कहेवामां आवे छे; अने एने ज त्रिकाळी एक द्रव्यनी अपेक्षाए परकाळ कहेवामां आवे छे; त्रिकाळी एकरूप द्रव्य ते स्वकाळ, अने तेनी अपेक्षा तेनी वर्तमान दशा ते परकाळ. ल्यो, आवी वात!

आ प्रमाणे स्वकाळ-अपेक्षाथी अस्तित्वनो भंग कह्यो.

*

हवे दसमा भंगना कळशरूपे काव्य कहेवामां आवे छेः-

* कळश २प७ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘पशुः’ पशु अर्थात् एकांतवादी अज्ञानी, ‘अर्थ–आलम्बन–काले एव ज्ञानस्य सत्त्वं कलयन्’ ज्ञेय पदार्थोना आलंबन काळे ज ज्ञाननुं अस्तित्व जाणतो थको, ‘बहिः– ज्ञेय–आलम्बन–लालसेन मनसा भ्राम्यन्’ बाह्य ज्ञेयोना आलंबनना लालसावाळा चित्तथी (बहार) भमतो थको ‘नश्यति’ नाश पामे छे;..........

अहा! पोते आत्मा शुं चीज छे एनी खबर नथी ते, कहे छे, अज्ञानी ढोर जेवो छे. तेनी वर्तमान ज्ञाननी दशानुं लक्ष बाह्य पदार्थ उपर ज होय छे. आ परज्ञेयरूप पदार्थो छे त्यांसुधी ज जाणपणुं छे ने त्यांसुधी ज हुं छुं एम ते माने छे. तेथी बाह्य ज्ञेयोने ग्रहण करवानी लालसावाळा चित्तथी अर्थात् आने जाणुं ने तेने जाणुं एवी लालसा वडे चित्तने बहारमां ने बहारमां भमावतो थको पोतानी हयातीनो नाश करे छे. अहा! हुं माराथी जाणुं छुं, ने ज्ञाननी दशामां जे बदलवुं थाय छे ते मारा ज्ञानस्वभावने आश्रित छे, परज्ञेयाश्रित नथी एवुं (सत्यार्थ) नहि मानतो थको, बाह्य ज्ञेयोना आलंबननी लालसा वडे चित्तने बहारमां ने बहारमां भमावतो