४३६ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१०
वळी केटलाक कहे छे-उपादाननी अनेक योग्यता छे. तेमां जे काळे जेवुं निमित्त मळे ते मुजब योग्यता प्रगटरूप थई कार्य नीपजे छे. तेओ कहे छे-वर्तमान दशा ए द्रव्यनो परिणमनस्वभाव छे, पण विकाररूपे के निर्विकारदशारूपे थवुं ए तो जेवो संयोग-निमित्त होय एना पर आधारित छे. अरे भाई! वस्तुनो परिणमन स्वभाव, परिणाम अने परिणमननुं थवुं ए शुं जुदी जुदी चीज हशे? शुं थाय? कोई पण रीते आत्मानी दशा परने लईने थाय एम माने तो ज एने संतोष थाय छे. परंतु प्रत्येक पदार्थ-जीव अने रजकण वगेरेना परिणमनथी थती दशा ते पोताथी ज थाय छे, परथी- निमित्तथी कदीय नहि. पर-निमित्त हो भले, पण एनाथी आमां परिणमन अने एनी दशा थाय छे एम त्रणकाळमां नथी. भाई! आ सर्वज्ञ परमात्मा त्रिलोकीनाथ तीर्थंकरदेवनी वाणीमां आवेली वात छे. अहीं कहे छे- निमित्तने-परने लईने एनी दशा थाय एवी जेनी मान्यता छे ते निमित्तनी-परनी लालसावाळो निमित्तनी शोधमां बहार परिभ्रमतो नाहक व्यग्र थाय छे बस; अर्थात् ते पोतानो नाश करे छे बस; केमके पोतानी पर्यायनुं सहज स्वतः अस्तित्व छे तेनी एने खबर नथी.
प्रश्नः– अहीं आवीए छीए तो आवी तत्त्वनी वात जाणवा मळे छे, बहार बीजे केम नथी मळती? (माटे जेवुं निमित्त मळे तेवुं उपादानमां कार्य थाय).
उत्तरः– अरे भाई! प्रत्येक समये वस्तुमां थतुं परिणमन अने परिणाम ते तेनो स्वकाळ छे. बहारनो स्वकाळ बीजो छे तेथी वर्तमान तत्त्वने जाणवारूप दशा परथी थई छे (एम ते) केम होय? प्रत्येक समये थती भिन्न भिन्न दशा ते पोताना ज कारणथी छे, एनुं कारण कोई पर नथी. जो भिन्न भिन्न अवस्था परना कारणे थाय तो पोताना अस्तित्वनो ज नाश थई जाय. सूक्ष्म वात छे भाई! वस्तुनी प्रत्येक अवस्था स्वथी थाय ने परथी न थाय ए अनेकान्त छे; अने परथी जे ते दशा थवानुं माने ते एकान्त छे, मिथ्यात्व छे.
जुओ, आ भाषा थई रही छे ने! ते भाषा-वर्गणानुं परिणमन छे, ते एनो स्वकाळ छे; आ जीवना बोलवाना विकल्पना कारणे ए थई छे एम नथी. भाषानुं अस्तित्व-होवापणुं ए एना कारणे छे, आ जीवना कारणे नथी. भाई! आवुं ज वस्तुनुं स्वरूप छे बापु! पर निमित्त हो, पण निमित्त उपादानमां कांई ज करतुं नथी. वास्तवमां तो प्रत्येक पर्याय पोताना षट्कारकपणे थईने पोते उपजे छे, तेने परनी कोईज सहाय- अपेक्षा होता नथी. समजाणुं कांई......?
पर्याय थाय छे तो पोतामां पोताथी, परंतु ते समये लक्ष निमित्त पर होवाथी अज्ञानीने एम भास थाय छे के बाह्य पदार्थने लईने आ दशा थई. तेथी हुं बधां बाह्य निमित्तो मेळवुं- एम अज्ञानी निमित्तोनी लालसारूप चित्त वडे भमे छे अने ए रीते खेदखिन्न थई पोतानो नाश करे छे.