Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४३८ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० थाय ज. भाई! आ शरीरनी तुं लाख दवा करे के उपरथी इन्द्र उतरे तोय ए अवस्था (थवायोग्य होय ते अवस्था) फरे एम बनवुं संभवित नथी. छतां परथी-दवा वगेरेथी- मारी निरोगता थई तथा निरोगता छे तो मने धर्म थई शके छे एम माननारा बधा मूढ छे. अरे भाई! निरोगता ए तो जड शरीर-माटीनी अवस्था छे, शुं एने लईने आत्मामां धर्म थाय? न थाय. जडथी चेतननी दशा कदीय न थाय, ने चेतनथी जडनी दशा कदीय न थाय. भाई! आ तो भगवान केवळीनी वाणीमां प्रगट थयेलो वस्तु- व्यवस्थानो ढंढेरो छे. अंदर सच्चिदानंद प्रभु पोते त्रिकाळ छे एनी द्रष्टि अने रमणता करे तो सम्यग्दर्शन अने शांति प्रगट थाय छे अने ते धर्म छे. ते दशा पोताथी पोताना लक्षे पोताना आधारे थाय छे, कोई परना-देव-गुरु-शास्त्रना आधारे ते प्रगट थाय छे एम कदीय नथी. आवो मारग छे बापु!

जुओ, ए ज कहे छे के- ‘स्याद्वाद वेदी पुनः’ अने स्याद्वादनो जाणनार तो

‘पर–कालतः अस्य नास्तित्वं कलयन्’ परकाळथी आत्मानुं नास्तित्व जाणतो थको, ‘आत्म–निखात–नित्य–सहज–ज्ञान–एक–पुञ्जीभवन्’ आत्मामां दढपणे रहेला नित्य सहज ज्ञानना एक पुंजरूप वर्ततो थको, ‘तिष्ठति’ टके छे-नष्ट थतो नथी.

अहाहा...! स्याद्वादी धर्मी तो, पोतानी दशा पोताथी ज थाय, परथी न थाय, परथी तो एनी नास्ति ज छे एम जाणतो थको, वर्तमान ज्ञाननी दशाने सहज नित्य ज्ञानपुंज एवा आत्मामां एकाग्र करीने, हुं तो ज्ञानपुंज आत्मा छुं एम वर्ततो थको पोताना सत्ने जीवतुं राखे छे.

भाई! दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादिना परिणाम ते शुभभाव छे, ते कांई धर्म नथी. वळी तेमां कर्ताबुद्धि थवी ते मिथ्यात्वभाव छे. रागनी ने परनी कर्ताबुद्धि ते मिथ्यात्वभाव छे. एक स्वद्रव्यना लक्षे आनंदनी जे दशा थाय तेने ज परमात्मा धर्म कहे छे. स्याद्वादी धर्मात्मा आम स्वद्रव्यना ज आश्रयमां रहीने पोताना सत्ने टकावी राखे छे. आवी वात छे.

* कळश २प७ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘एकांती ज्ञेयोना आलंबनकाळे ज ज्ञाननुं सत्पणुं जाणे छे तेथी ज्ञेयोना आलंबनमां मनने जोडी बहार भमतो थको नष्ट थाय छे.’

जोयुं? एकांती अज्ञानी ज्ञेयोना आलंबन काळे ज ज्ञाननुं होवापणुं माने छे. तेथी ते ज्ञेयोना आलंबननी लालसावाळो थईने पोताना चित्तने ज्ञेयोना आलंबनमां जोडे छे, अने ते रीते बहार विषयोमां भमतो थको नाश पामे छे अर्थात् अशांति ने व्यग्रताने ज पामे छे. परंतु-