४४०ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० ‘नित्यं बहिः –वस्तुषु विश्रान्तः’ सदाय बाह्य वस्तुओमां विश्राम करतो थको, ‘स्वभाव– महिमनि एकान्त–निश्चेतनः’ (पोताना) स्वभावना महिमामां अत्यंत निश्चेतन (जड) वर्ततो थको, ‘नश्यति एव’ नाश पामे छे;.......
वस्तु-आत्मा जे रीते छे ते रीते एनी जेने द्रष्टि नथी, परंतु ऊंधी ज द्रष्टि छे ते एकान्तवादी मिथ्याद्रष्टि पशु छे. वर्तमानमां ते पशु जेवो छे अने एना फळमां निगोदरूप पशुगतिमां जशे. आ (हम्बग) जूठ मूठ नथी, आ सत्य वात छे भाई!
अहीं कहे छे- पशु अर्थात् एकान्तवादी अज्ञानी ‘परभाव भाव कलनात्’ पोता सिवाय बीजा अनंत आत्मा अने परमाणुओ आदिना भाव-शक्ति-गुणने तेनुं जे परिणमन तेने जाणतां ए परभावो वडे पोतानुं अस्तित्व छे तेम माने छे. खरेखर तो जे भावस्वरूप (गुणस्वरूप) पोते छे एनाथी पोतानी हयाती छे, परंतु अज्ञानीनुं लक्ष निरंतर पर उपर होवाथी, आ परभाव जे जणाय छे ते वडे हुं छुं एम ते माने छे. पोताना ज्ञान आदि अनंतगुणनुं अनंत सामर्थ्य छे. अने एमांथी पोतानी पर्याय प्रगटे छे, छतां एम न मानतां परभाव जे जगतनी अनंती चीजो -मन, वाणी, इन्द्रिय, देव, गुरु, शास्त्र, धन-संपत्ति ईत्यादि लक्षमां आवे छे ते वडे मारा ज्ञाननुं अस्तित्व छे एम अज्ञानी माने छे. ओहो! पोताना अनंतगुणमय अस्तित्वनुं अज्ञानीने ज्ञान-श्रद्धान नथी. अहा! अनंत सामर्थ्ययुक्त ईश्वरने लईने मारा भावनी प्रगटता थशे, पर ईश्वरथी मारामां ईश्वरता प्रगटशे -एम अज्ञानी माने छे; तेने अनंत ईश्वरतायुक्त पोताना ज्ञान-दर्शनादि गुणोनुं श्रद्धान नथी. तेथी पोताने छोडी सदाय बाह्य वस्तुओमां ज ते विश्राम करे छे.
अहा! एकांती-अज्ञानी पोताना भावना-गुणना अनंत सामर्थ्यने जाणतो नथी. पोताना आत्मामां ज्ञानदर्शन आदि अनंतगुणना अचिंत्य सामर्थ्यने अवगणीने, परभावथी-देह, मन, वाणी, इन्द्रियथी मारी पर्यायनुं परिणमन अने अस्तित्व छे एम अज्ञानी माने छे. अहा! परभावना लक्षमां हुं जाउं छुं तो मारी पर्यायमां भावनी वृद्धि थाय छे एम मानतो थको अज्ञानी परमां-परवस्तुमां ज विश्राम करे छे, अने ए रीते पोते जड निश्चेतन थयो थको नाश पामे छे.
अज्ञानी बाह्य विषयोमां सुख माने छे. पोते अंदर सुखधाम प्रभु छे एने अवगणीने, परभावोथी-स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द आदि इन्द्रियना विषयोथी मने मझा आवे छे एम ते माने छे, अने तेथी स्पर्शादि विषयोमां ते प्रवर्ते छे, जड जेवो थई त्यां ज विश्राम करे छे. पण भाई! ए पांच इन्द्रियना विषयो ए तो जडनी शक्ति बापु! एनाथी तारा सुखनुं होवापणुं केम होय? जरा जो तो खरो!