Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परिशिष्टः ४४१

परभावमां सुख शोधवा थतां, परभावमां विश्राम करवा जतां तारा अनंत सुखस्वभावनो विच्छेद थाय छे.

अहा! वीतरागनी वाणीनी शी गंभीरता! आत्मामां अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य, अनंत सुख ईत्यादि अनंत महिमायुक्त अनंत भाव छे. ए भावोनो प्रवाह सतत पोताथी वहे-परिणमे छे. जेमके-ज्ञाननो प्रवाह, सुखनो प्रवाह सतत निरंतर पोताथी वह्या-परिणम्या ज करे छे. परंतु अज्ञानी, वर्तमान पर्याय पोताना भावमांथी प्रवहती थकी उत्पन्न होवा छतां, जाणवामां आवता परभावमांथी ते प्रगट थई छे एम माने छे. अने ए रीते ते पोताना स्वभावना महिमाथी रहित थई जड अचेतन थई रह्यो छे. एने स्वभावनो-निज चैतन्यभावनो-महिमा न रह्यो एटले परभावना महिमामां स्थित थयो थको ते जड थई रह्यो छे. अहा! पर केवळीने जाणतां मारुं ज्ञान पर केवळीमांथी आवे छे एम माननार परभावना महिमामां स्थिर थयो थको जड थई रह्यो छे. बहु आकरी वात! पण आ सत्य वात छे. समजाणुं कांई....?

प्रश्नः– तो जे अर्हंतने द्रव्य-गुण-पर्यायथी जाणे तेनो मोह नाश पामे छे एम प्रवचनसारमां कह्युं छे ने?

उत्तरः– भाई! त्यां प्रवचनसारमां (गाथा ८०मां) जे कह्युं छे ए तो निमित्तनुं कथन छे. ए व्यवहारनयनुं वचन छे. ए तो एना ज्ञानमां पहेलां अरिहंतना द्रव्य- गुण-पर्याय ख्यालमां आवे छे. अर्हंतना द्रव्य-गुण-पर्यायनो निर्णय करनारुं चिंतवन छे त्यांसुधी तो विकल्प छे, स्वानुभूति नथी, पण पछी ज्यारे पोतानो द्रव्य स्वभाव पण एवो ज छे एम निश्चय करी अंदरमां जाय छे त्यारे स्वभावना सामर्थ्यनुं वास्तविक परिणमन थाय छे अने मोह नाश पामे छे. तेमां अरिहंतना द्रव्य-गुण-पर्यायनुं चिंतवन-जाणपणुं तो निमित्तमात्र छे, ए कांई अंतर-परिणमननुं वास्तविक कारण नथी, अर्थात् एने लईने अंदर समकित थयुं छे एम नथी. अहा! अरिहंतना जेवुं ज मारा स्वभावनुं सामर्थ्य छे एम निश्चय करी ज्यारे द्रष्टि अंतर्मुख एकाकार थाय छे त्यारे सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान प्रगट थाय छे, अने तो निमित्तथी-निमित्तनी मुख्यताथी एम कहेवाय के जे अरहंतना द्रव्य-गुण-पर्यायने जाणे छे तेनो मोह नाश पामे छे. भाई! निमित्तथी कहीए ए जुदी चीज छे (व्यवहारनयनी शैली छे) अने एम मानवुं ए जुदी चीज (मिथ्यात्व) छे. समजाणुं कांई...?

प्रभु! तारा भावनी गंभीरता केटली? भगवान! तुं आखो ध्रुव चित्स्वरूप पदार्थ -एमां शान्तिनो भाव पूर्ण, ज्ञाननो भाव पूर्ण, श्रद्धानो भाव पूर्ण, आनंदनो भाव पूर्ण, प्रभुतानो भाव पूर्ण-एम अनंता पूर्ण भाव तारा एक ज्ञायक तत्त्वमां पडया छे.