Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४४२ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० अहाहा....! एना सामर्थ्यनी शी वात! पण अरे! आवा निज सामर्थ्यनी प्रतीति विना, पर्यायमां परभाव जाणवामां आवतां एनाथी (परभावथी) आ भाव मारो प्रगट थयो ने वृद्धि पाम्यो एम परनो महिमा करीने अज्ञानी पोताना भावना सामर्थ्यनो तिरस्कार करे छे, अने ए रीते नाश पामे छे. अहा! विकल्पवाळुं ज्ञान, केवळी आदि परभावने जाणवावाळुं (परलक्षी) ज्ञान पोतानी जातनो भाव नथी, विपरीत भाव छे, छतां एने लईने मने धर्म थशे एम मानतो अज्ञानी परभावमां स्थित थयो थको नाश पामे छे.

जेवुं निमित्त आवे तेवी पोताना भावनी दशा थाय एम जे माने छे ते खरेखर पोतानी दशाना भावनी अंतरंग योग्यताने स्वीकारतो नथी. तेनी द्रष्टि निरंतर निमित्त- परभाव उपर ज रहे छे. तेना चितमां निमित्तनो-परवस्तुनो ज महिमा रहे छे, तेने पोताना स्वभाव-सामर्थ्यनो महिमा उदय पामतो नथी. भगवान अरिहंतनी दिव्यध्वनिनी गर्जना थाय तो मारुं वीर्य उछळे ने मारामां भाव प्रगटे -एम बाह्यवस्तुमां ज अज्ञानी विश्राम करे छे. पण भाई! स्वभावना सामर्थ्यनुं अंतर्लक्ष थया विना तारामां भाव केम प्रगटे? बाह्य वस्तुमां-निमित्तमां तारा भावने प्रगटाववानुं (परिणमाववानुं) सामर्थ्य नथी भाई! तुं अवळे रस्ते चढयो छो बापु! अहा! आ एक बोल पण सत्यार्थ समजे तो बधा खुलासा थई जाय.

तो क्षायिक समकित भगवान केवळी आदिनी समीपमां ज थाय छे एम शास्त्रमां कह्युं छे ने?

हा, कह्युं छे; पण ए तो क्षायिक समकितना काळे बाह्य निमित्त कोण होय छे एनुं त्यां ज्ञान कराव्युं छे बापु! बाकी क्षायिक समकित तो अंदर पोताना स्वभावनी समीपता ने स्वभावनुं अंतर्लक्ष वधतां थाय छे. स्वभावनी समीपता विना केवळीनी समीपता तो अनंतवार थई प्रभु! पण एथी शुं? (एनाथी शुं साध्य थयुं?)

भाई! तुं विचार कर. परतंत्रतामां तुं राजी थई रह्यो छो परंतु एथी तारी स्वतंत्रता लूंटाई रही छे प्रभु! वर्तमान भले विकारी पर्याय हो, परंतु ते एनी योग्यताथी थई छे, कर्मना उदयना कारणे थई छे एम नथी. एक समयनी, विकारनी पर्यायमां षट्कारकरूपे परिणमवुं एवो ज ए भावनी पर्यायनो स्वभाव छे. त्रिकाळभावमां षट्कारकनी शक्ति गुणरूपे पडी छे, अने ते भावनुं परिणमन पोतानी पर्यायमां पोतानी जन्मक्षणे पोताना सामर्थ्यथी थाय छे. अहा! जे आम मानतो नथी एनुं लक्ष परभावना महिमामां गयुं छे, एने स्वभावनो महिमा छूटी गयो छे. तेथी ते अत्यंत जड थई वर्ततो थको नाश पामे छे.

अहा! पोताना भावनुं सामर्थ्य पूरण छे. छतां एने न मानतां जे कोई एम माने छे के मारी पर्यायमां जे कांई सामर्थ्य प्रगट थाय छे ते परने लईने प्रगट थाय