शुद्ध –स्वभाव–च्युतः’ सर्व भावोरूप भवननो आत्मामां अध्यास करीने (अर्थात् सर्व ज्ञेय पदार्थोना भावोरूपे आत्मा छे एम मानीने) शुद्ध स्वभावथी च्युत थयो थको, ‘अनिवारितः सर्वत्र अपि स्वैरं गतभयः क्रीडति’ कोई परभावने बाकी राख्या विना सर्व परभावोमां स्वच्छंदताथी निर्भयपणे (निःशंकपणे) क्रीडा करे छे;........
जुओ, भगवान आत्मा स्वभावे ईश्वर-परमेश्वर छे. परमेश्वरनी शक्ति एनामां त्रिकाळ पडी छे ने? अहाहा....! जेना एक एक गुण परम ईश्वरताथी भरेला छे एवो आत्मा अनंतगुणना सामर्थ्यनो स्वामी छे. एनी ईश्वरता कोईथी खंडित न थाय एवी अखंडित छे. एने कोई परनी सहायनी अपेक्षा नथी एवो ए परमेश्वर छे. जगतमां श्रीमदे त्रण प्रकारे ईश्वर कह्या छे. धर्मात्माने भगवान आत्मा अनंत चैतन्यस्वभावना सामर्थ्यथी भरेलो होवाथी पोते स्वभाव-ईश्वर छे. अज्ञानीने राग अने पुण्य ज पोतानुं सर्वस्व होवाथी ते विभावेश्वर छे अने परमाणु जडेश्वर छे. केमके ते पोताना द्रव्य-गुण- पर्यायथी स्वतंत्र परिणमी रह्यो छे.
अहीं आ अज्ञानी विभावेश्वरनी वात छे. तेने अहीं पशु कह्यो छे. अहाहा....! आत्मा अंदर अनंतगुणना सामर्थ्यथी भरेलो परमेश्वर छे. तेनी वर्तमान दशा थई छे ए तो पोताना भावना (गुणना) अस्तित्वथी थई छे. भावमां वर्तमान जे पर्यायनी शक्ति व्यक्त थवायोग्य छे ते ज व्यक्त-प्रगट थई छे. तेमां परभावो जाणवामां आवतां आ परभावो छे ते ज हुं छुं एम अज्ञानी परभावोने पोतारूप करे छे. अहा! एने स्वभाव-परभावनो कोई विवेक ज नथी.
वस्तुनुं स्वरूप पोताना भावथी छे अने परभावथी नथी. पण एम न मानतां जाणवामां आवता शरीरादि परभावो हुं छुं एम अज्ञानीने भ्रम छे. आ शरीर हुं छुं, मन-वाणी-इन्द्रियो हुं छुं, क्रोधादि हुं छुं -एम परभावोने अज्ञानी पोतारूप माने छे. शरीरादिथी अने रागादिथी लाभ थाय एम माननारा बधा परभावोने ज पोतारूप करे छे. तेओने अहीं एटला माटे पशु कह्या छे के पशुनी जेम तेओने स्वभाव-परभावनो कोई विवेक नथी. समजाणुं कांई....?
अहाहा...! स्त्री-कुटुंब-परिवार, देव-गुरु-शास्त्र ईत्यादि परभावो ज्ञानमां जणाय खरा, पण ए बधा पोताना भावोना अस्तित्वथी भिन्न छे. अहा! ए सर्व परभावोथी तो पोते नास्तिरूप जुदो ज छे. पण ते परभावो हुं छुं-देव ते हुं छुं, गुरु ते हुं छुं, शास्त्र ते हुं छुं केमके ए सर्वथी मने लाभ छे एम मानतो अज्ञानी परभावोने