Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परिशिष्टः ४४७

शुद्धस्वभावथी भ्रष्ट थयो थको कोई पण परभाव-परज्ञेयने बाकी राख्या विना सर्व परभाव ते हुं छुं -हुं सर्वव्यापक छुं -एम मानी अज्ञानी स्वच्छंदे क्रीडा करे छे-आचरण करे छे. ल्यो, आ महाहिंसा छे जेना कारणे एने अनंतकाळ पशुगतिमां-निगोदादिमां रझळपट्टी थाय छे. आवी वात बापु!

हवे कहे छे– ‘स्याद्वादी तु’ अने स्याद्वादी तो ‘स्वस्य स्वभावं भरात् आरूढः’

पोताना स्वभावमां अत्यंत आरूढ थयो थको, ‘परभाव–भाव–विरह–व्यालोक– निष्कम्पितः’ परभावोरूप भवनना अभावनी द्रष्टिने लीधे (अर्थात् आत्मा परद्रव्योना भावोरूपे नथी- एम देखतो होवाथी) निष्कंप वर्ततो थको, ‘विशुद्ध एव लसति’ शुद्ध ज विराजे छे.

अहाहा....! जोयुं? कहे छे- स्याद्वादी सम्यग्द्रष्टि तो पोताना स्वभावमां अत्यंत आरूढ थयो छे; तेने परभावोरूप भवनना त्यागनी द्रष्टि खीली गई छे. अहाहा...! मारामां आ जे कोई दशा प्रगट थाय छे ते मारामां शक्तिरूपे विद्यमान छे ते प्रगट थाय छे, परभावोमांथी ते आवे छे वा परभावने लईने ते प्रगट थाय छे एम छे नहि-एम ते यथार्थ जाणे छे. अहा! एक समये एक (चीजनुं) ज्ञान छे, ने बीजे समये बीजुं (बीजी चीजनुं) ज्ञान थाय छे एनुं कारण सामे चीज बदलाय छे ते नथी, ए तो पोताना भावमां जे शक्तिरूपे पडी छे ते, ते काळे व्यक्तपर्यायरूपे प्रगट थाय छे. सामेनी चीज तो निमित्तमात्र छे; ल्यो, धर्मी पुरुष आवुं जाणे छे. समये समये प्रगट थती पर्याय ए तो स्व-भावनी शक्तिनी व्यक्ति छे अने ते एनो स्वकाळ छे. ओहो! भावमां तो शक्तिरूपे त्रिकाळवर्ती बधी पर्यायो पडेली छे. समजाणुं कांई....?

समयसार गाथा ४९ मां अव्यक्तना बोलमां आवे छे के -“चैतन्यसामान्यमां चैतन्यनी समस्त व्यक्तिओ अंतर्लीन छे माटे (-आत्मा) अव्यक्त छे.” आमां चैतन्यनुं जे सामान्यपणुं, ध्रुवपणुं, एकपणुं तेने अव्यक्त कह्युं छे केमके एमां चैतन्यनी समस्त व्यक्तिओ-जे प्रगट थवानी छे, ने जे प्रगट थई गई छे ए बधी -अंतर्लीन छे. (एमांथी प्रतिनियत एक एक पर्याय एना काळे आवे छे). निश्चयथी जोईए तो स्वभाव-परभावने जाणवानी जे स्वपरप्रकाशक पर्याय प्रगट थाय छे ते, ते जातनी ते काळे पर्यायनी शक्ति-योग्यता छे ते प्रगट थाय छे. एटले सामान्यपणुं छे तेने (समर्थ) कारण न गणतां खरेखर जे ते प्रकारे पर्याय थवानो सामान्यस्थित अंदर पर्याय शक्ति- योग्यतारूप जे भाव छे ते कारण छे. जो सामान्य स्वभाव खरेखर कारण होय तो समये समये एकसरखी दशा आववी जोईए केमके सामान्य स्वभाव तो सदा एकरूप छे; परंतु सरखी नथी आवती, केमके पर्यायनो ते ते प्रकारे पोतानो स्वकाळ छे, ते ते काळे तेवी ज योग्यता छे. समजाणुं कांई....? भाई! आ बधुं समजवुं पडशे हों. आ समज्या विना बहारमां-परभावमां सुख गोते छे पण धूळेय त्यां सुख नथी, त्यां तो मफतनो हेरान थई रखडी मरवानुं छे.