शुद्धस्वभावथी भ्रष्ट थयो थको कोई पण परभाव-परज्ञेयने बाकी राख्या विना सर्व परभाव ते हुं छुं -हुं सर्वव्यापक छुं -एम मानी अज्ञानी स्वच्छंदे क्रीडा करे छे-आचरण करे छे. ल्यो, आ महाहिंसा छे जेना कारणे एने अनंतकाळ पशुगतिमां-निगोदादिमां रझळपट्टी थाय छे. आवी वात बापु!
पोताना स्वभावमां अत्यंत आरूढ थयो थको, ‘परभाव–भाव–विरह–व्यालोक– निष्कम्पितः’ परभावोरूप भवनना अभावनी द्रष्टिने लीधे (अर्थात् आत्मा परद्रव्योना भावोरूपे नथी- एम देखतो होवाथी) निष्कंप वर्ततो थको, ‘विशुद्ध एव लसति’ शुद्ध ज विराजे छे.
अहाहा....! जोयुं? कहे छे- स्याद्वादी सम्यग्द्रष्टि तो पोताना स्वभावमां अत्यंत आरूढ थयो छे; तेने परभावोरूप भवनना त्यागनी द्रष्टि खीली गई छे. अहाहा...! मारामां आ जे कोई दशा प्रगट थाय छे ते मारामां शक्तिरूपे विद्यमान छे ते प्रगट थाय छे, परभावोमांथी ते आवे छे वा परभावने लईने ते प्रगट थाय छे एम छे नहि-एम ते यथार्थ जाणे छे. अहा! एक समये एक (चीजनुं) ज्ञान छे, ने बीजे समये बीजुं (बीजी चीजनुं) ज्ञान थाय छे एनुं कारण सामे चीज बदलाय छे ते नथी, ए तो पोताना भावमां जे शक्तिरूपे पडी छे ते, ते काळे व्यक्तपर्यायरूपे प्रगट थाय छे. सामेनी चीज तो निमित्तमात्र छे; ल्यो, धर्मी पुरुष आवुं जाणे छे. समये समये प्रगट थती पर्याय ए तो स्व-भावनी शक्तिनी व्यक्ति छे अने ते एनो स्वकाळ छे. ओहो! भावमां तो शक्तिरूपे त्रिकाळवर्ती बधी पर्यायो पडेली छे. समजाणुं कांई....?
समयसार गाथा ४९ मां अव्यक्तना बोलमां आवे छे के -“चैतन्यसामान्यमां चैतन्यनी समस्त व्यक्तिओ अंतर्लीन छे माटे (-आत्मा) अव्यक्त छे.” आमां चैतन्यनुं जे सामान्यपणुं, ध्रुवपणुं, एकपणुं तेने अव्यक्त कह्युं छे केमके एमां चैतन्यनी समस्त व्यक्तिओ-जे प्रगट थवानी छे, ने जे प्रगट थई गई छे ए बधी -अंतर्लीन छे. (एमांथी प्रतिनियत एक एक पर्याय एना काळे आवे छे). निश्चयथी जोईए तो स्वभाव-परभावने जाणवानी जे स्वपरप्रकाशक पर्याय प्रगट थाय छे ते, ते जातनी ते काळे पर्यायनी शक्ति-योग्यता छे ते प्रगट थाय छे. एटले सामान्यपणुं छे तेने (समर्थ) कारण न गणतां खरेखर जे ते प्रकारे पर्याय थवानो सामान्यस्थित अंदर पर्याय शक्ति- योग्यतारूप जे भाव छे ते कारण छे. जो सामान्य स्वभाव खरेखर कारण होय तो समये समये एकसरखी दशा आववी जोईए केमके सामान्य स्वभाव तो सदा एकरूप छे; परंतु सरखी नथी आवती, केमके पर्यायनो ते ते प्रकारे पोतानो स्वकाळ छे, ते ते काळे तेवी ज योग्यता छे. समजाणुं कांई....? भाई! आ बधुं समजवुं पडशे हों. आ समज्या विना बहारमां-परभावमां सुख गोते छे पण धूळेय त्यां सुख नथी, त्यां तो मफतनो हेरान थई रखडी मरवानुं छे.