Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४४८ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१०

अहा! पोताना द्रव्यमां जे ज्ञान, श्रद्धा, शान्ति, आनंद ईत्यादि शक्तिओ छे एमांथी जेटली पर्यायो प्रगट थई गई अने जेटली प्रगट थशे ते बधी तेमां अंतर्लीन छे. अने तेथी स्व-परने, स्वभाव-परभावने जाणवानो जे पर्यायभाव उत्पन्न थाय छे ते पोताथी थाय छे, परथी नहि, अने त्रिकाळी सामान्यस्वभाव छे एनाथी पण नहि. त्रिकाळीमां जे ते समयनी जे ते प्रकारनी योग्यता विद्यमान छे ते जे ते समये पर्यायरूपे प्रगट थाय छे. एटले खरेखर सामान्यद्रव्य पण पर्यायनुं कारण न रह्युं भाई! आ तारा ख्यालमां -बुद्धिमां तो प्रथम ले. आ बुद्धिगम्य थाय तो पछी अनुभवगम्य थाय, अने त्यारे आ आम ज छे एम अंदरथी निःशंकतानो रणको आवे. धर्मीने आ निःशंकता थई छे के- मारी वर्तमान दशा, मारा भावमां जे शक्तिरूप-योग्यतारूप विद्यमान हती ते बहार आवी छे. तेथी खरेखर तेने परभावरूप थवाना त्यागरूप द्रष्टि अंदरमां खीली गई छे. अहा! तेणे द्रष्टिमां परभावनो त्याग करी दीधो छे.

जुओ, आ कह्युं ने के- धर्मी पोताना स्वभावमां अत्यंत आरूढ थयो थको, परभावोरूप भवनना अभावनी द्रष्टिने लीधे निष्कंप वर्तता थको, शुद्ध ज विराजे छे. धर्मीने परभावमांथी मारो भाव थाय एवी द्रष्टिनो अभाव-त्याग थई गयो छे, अने पोताना स्व-भावथी पोतानुं अस्तित्व होवानी द्रष्टि प्रगट थई छे. तेथी ते स्वभावमां आरूढ थई निष्कंप वर्ततो थको शुद्ध ज विराजे छे. अहा! धर्मी, आत्मा परद्रव्योना भावरूप नथी-एम देखतो होवाथी निष्कंप छे. परथी मारी दशा थाय एवो मिथ्यात्वभाव ते कंपन छे, अने सम्यग्दर्शन निष्कंप छे. अहा! निज आत्मद्रव्यने द्रष्टिमां लेतां जे सम्यग्दर्शन थयुं ते निष्कंप छे, कारण के भेगुं अजोगपणुं पण अंशे प्रगट थाय छे ने! सर्वगुणांश ते समकित. एटले के समकित थवा काळे, आत्मानो योग नामनो जे गुण छे तेमां पण ते प्रकारे निष्कंपता थवानो काळ छे. तेथी ज्ञानी स्वभावमां आरूढ थई निष्कंप वर्ततो थको शुद्ध ज विराजे छे; अर्थात् परभावने पोतामां भेळवतो नथी, एक शुद्ध स्वरूपने ज अनुभवे छे.

अहाहा...! कहे छे– ‘विशुद्धः एव लसति’ ज्ञानी शुद्ध ज विराजे छे. तो शुं एने राग छे ज नहि? किंचित् राग छे, तथापि शुद्ध ज विराजे छे. केम? केमके रागने ते मात्र जाणे ज छे (करतो नथी). वळी ते ज्ञान शुद्ध छे अर्थात् राग तेमां भळ्‌यो नथी, केमके एने जाणनारुं ज्ञान ज्ञानथी-पोताथी छे रागने लईने छे एम नहि-एम ज्ञानी यथार्थ जाणे छे. थोडुं सूक्ष्म आवी गयुं! पण अरूपी आत्मानी वात सूक्ष्म ज होय ने!

जे जीव निमित्त एटले के संयोग अने परभावथी पोताना भावनी (ज्ञाननी) दशा थयेली माने छे ते संयोग अने परभावने पोतारूप माने छे; ते मिथ्याद्रष्टि छे.