Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3906 of 4199

 

परिशिष्टः ४पप

पोताना नित्य पवित्र स्वभावने एकने निर्मळ अनुभवे छे. पर्यायनुं बदलवुं छे छतां सर्वथा अनित्य अने अनेकरूप थई गयो एम धर्मी कदी मानतो नथी.

* कळश २६१ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘एकांतवादी ज्ञानने सर्वथा एकाकार-नित्य प्राप्त करवानी वांछाथी, उपजती- विणसती चैतन्यपरिणतिथी जुदुं कांईक ज्ञानने इच्छे छे, परंतु परिणाम सिवाय जुदो कोई परिणामी तो होतो नथी......’

अहाहा...! एक ज धर्मने जोनारो एकांतवादी, चैतन्यनी जे अनेकरूप परिणति थाय तेने उपाधि माने छे. तेने दूर करीने ते सर्वथा नित्य आत्मतत्त्वने प्राप्त करवा मागे छे. पण चैतन्यनी परिणतिथी जुदुं एवुं कोई आत्मतत्त्व छे नहि, केमके परिणाम विनानो जुदो कोई परिणामी होतो नथी. तेथी एकांतवादीने चैतन्य ध्रुव तत्त्वनी प्राप्ति थती नथी.

वळी अज्ञानी परिणाम पोताथी थाय छे एम मानतो नथी. जुदी जुदी परिणति थाय छे ते परने लईने थाय छे एम माने छे. हवे जो परिणाम परथी थया तो शुं आत्मा परिणाम विनानो छे? शुं परिणमवुं ए आत्मानो स्वभाव नथी? परिणामथी जुदो कोई परिणामी होतो तो नथी.

आत्मा नित्य अपरिणामी छे एम कह्युं ए तो द्रव्यस्वभावनी द्रष्टि कराववाना प्रयोजनथी कह्युं हतुं. परंतु द्रष्टि करनार तो पर्याय छे. तेथी उछळती परिणतिने न माने अने एनाथी रहित आत्मतत्त्वने इच्छे तो एने ते क्यांथी मळे? न मळे; केमके एवुं कोई पृथक् ज्ञान-आत्मतत्त्व छे नहि. भाई! पर्यायथी दूर-जुदुं कोई द्रव्य छे एम छे नहि. अंशमां अंशी नथी, अंशीमां अंश नथी-ए तो अभेदनी द्रष्टि करवा अपेक्षाथी कथन छे, बाकी परिणाम क्यांय रहे छे, ने परिणामी बीजे क्यांक छे एम बेनो क्षेत्रभेद छे नहि. त्रिकाळी ध्रुव ज्यां (जे असंख्य प्रदेशमां) छे त्यां ज एनी दशा छे. आ वास्तविक स्थिति छे. हवे आ न समजाय एटले लोको रागमां चढी जाय. पण भाई! राग तो आग छे बापा! ए तो तारा आत्मानी शांतिने बाळीने ज रहेशे. समजाणुं कांई.....?

‘स्याद्वादी तो एम माने छे के - जो के द्रव्ये ज्ञान नित्य छे तोपण क्रमशः उपजती-विणसती चैतन्य परिणतिना क्रमने लीधे ज्ञान अनित्य पण छे; एवो ज वस्तुस्वभाव छे.’

जुओ, आत्मा द्रव्ये नित्य होवा छतां पर्याये अनित्य छे, ने पर्याये अनित्य होवा छतां द्रव्ये नित्य छे. ल्यो, आवुं यथार्थ माने एनुं नाम स्याद्वादी-अनेकांतवादी