Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3908 of 4199

 

परिशिष्टः ४प७

घणा वर्ष पहेलां जामनगरमां एक छोकराए पूछयुं’ तुं के-महाराज! तमे आत्मा देखो, ज्ञानमात्र वस्तुने देखो-एम कह्या करो छो पण ए देखवो केवी रीते? बहार देखीए तो आ बधुं (मात-पिता-परिवार, बाग-बंगला आदि) देखाय छे, ने अंदर (- आंख बंध करीने) देखीए तो अंधारुं देखाय छे; आत्मा तो देखातो नथी. तेने कहेलुं के -भाई! आ अंधारुं छे एम जाण्युं कोणे? अंधारामां कांई जणाय नहि, ने वळी अंधारुं अंधारा वडे जणाय नहि; तो अंधाराने जाण्युं कोणे? आ अंधारुं छे एम शा वडे जाण्युं? ज्ञान वडे; खरुं के नहि? अंधारानो जाणनार अंदर भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मा छे. अहाहा....! ज्यां अंधारुं जणाय छे त्यां ज जाणनार-ज्ञानप्रकाश छे. बीजी रीते कहीए तो आत्मा जणातो नथी एवो निर्णय कोणे कर्यो? भाई! ए निर्णय तारा ज्ञाननी भूमिकामां थयो छे. हुं नथी एम कहेतां ज हुं छुं एम एमां आवी जाय छे. (परस्वरूपथी हुं नथी एम जाणतां ज स्वस्वरूपथी हुं छुं एम सिद्ध थई जाय छे). देखतो नथी एम कहेतां ज देखनारो पोते छे एम निश्चय थाय छे. भाई! स्वस्वरूपमां अंतर्मुख द्रष्टि करे तो अवश्य देखनारो देखाय छे. समजाणुं कांई.....?

* कळश २६२ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘ज्ञानमात्र आत्मवस्तु अनेकान्तमय छे. परंतु अनादिकाळथी प्राणीओ पोतानी मेळे अथवा तो एकांतवादनो उपदेश सांभळीने ज्ञानमात्र आत्मतत्त्व संबंधी अनेक प्रकारे पक्षपात करी ज्ञानमात्र आत्मतत्त्वनो नाश करे छे.’

‘ज्ञानमात्र आत्मवस्तु अनेकान्तमय छे.’ जुओ, शिष्यनो प्रश्न हतो के आत्माने ज्ञानमात्र कहेतां एकान्त तो थई जतुं नथी ने? तो कहे छे- ज्ञानमात्र आत्मवस्तु अनेकान्तमय छे. अहा! ज्ञानमात्र कहेतां ज आत्मा ज्ञानस्वरूपथी तत् अने परज्ञेयस्वरूपथी अतत्, स्वद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावथी सत् अने परद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावथी असत् ईत्यादि अनेक धर्मो आत्मामां सिद्ध थई जाय छे. हुं वस्तुपणे एक छुं एम कहेतां ज गुण-पर्यायथी अनेक छुं, तथा हुं द्रव्यरूपथी नित्य छुं एम कहेतां ज पर्यायरूपथी अनित्य छुं एम सिद्ध थई जाय छे. आम ज्ञानमात्र कहेतां आत्मावस्तु अनेकान्तमय सिद्ध थाय छे. अहा! आ चौद बोलथी आचार्यदेवे संक्षेपमां आत्मानुं वास्तविक दर्शन कराव्युं छे.

आमां तो भाई! निमित्तथी कार्य थाय ए वात ज उडी जाय छे. प्रश्नः– हा, पण परद्रव्य निमित्त-कर्ता तो छे ने? उत्तरः– परद्रव्यने निमित्त-कर्ता कहीए ए तो आरोपित कथन छे. वास्तवमां निमित्त कर्ता नथी. असद्भूत व्यवहारनयथी एने कर्ता कहेवामां आवे छे. पोते पोतानी