Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४प८ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० पर्यायनो कर्ता कहीए ते सद्भुत व्यवहारनय छे. केमके भेद पडयो ने? अने परद्रव्यने निमित्तने कर्ता कहेवो ए असद्भुत व्यवहारनय छे. समजाणुं कांई.....?

भाई! प्रत्येक द्रव्यनी त्रणेकाळनी पर्यायो-पोतानी प्रत्येक पोताथी प्रगट थाय छे, परथी नहि. तेथी निमित्तथी उपादानमां कांई (विलक्षणता) थाय ए वात रहेती नथी. वळी आथी द्रव्यमां प्रगट थती प्रत्येक पर्याय पोताना स्वकाळे क्रमबद्ध प्रगट थाय छे एम सिद्ध थाय छे. पर्याय विकारी के निर्मळ हो, ते पोताना स्वकाळे क्रमबद्ध प्रगट थाय छे. पण एनुं यथार्थ ज्ञान क्यारे थाय? के ज्ञायकस्वभावनी अंतर्दष्टि थाय त्यारे. ज्ञानस्वभावनी अंतर प्रतीति थाय त्यारे ज क्रमबद्ध, भवितव्यता, काळलब्धि ने निमित्तादिनुं सम्यक् ज्ञान थाय छे.

परंतु अनादि काळथी प्राणीओ पोतानी मेळे अथवा तो एकांतवादनो उपदेश सांभळीने ज्ञानमात्र आत्मतत्त्व संबंधी अनेक प्रकारे पक्षपात करी ज्ञानमात्र आत्मतत्त्वनो नाश करे छे. कोई सर्वथा पर्यायने ज आत्मा माने छे तो कोई सर्वथा नित्य ध्रुव द्रव्यने ज आत्मा कहे छे; कोई सर्वथा आत्माने एकरूप माने छे तो कोई सर्वथा अनेकरूप माने छे. वळी कोई स्व-परने एक करी माने छे. आम अनेक प्रकारे पक्षपात करी एकांतवादीओ पोताना आत्मतत्त्वनो नाश करे छे, अर्थात् वस्तुतत्त्वने प्राप्त थता नथी. अरे! जीवोने वस्तुनुं यथार्थ स्वरूप समजवानी दरकार नहि एटले शास्त्रना अर्थ पण पोतानी मति-कल्पनाथी करे छे; शास्त्रने खरेखर शुं कहेवुं छे ए समजवा प्रति पोतानी बुद्धिने दोरी जता नथी.

वळी केटलाक कहे छे-उपादानमां अनेक प्रकारनी योग्यताओ छे. एमां कई योग्यता कार्यरूप परिणमे ए निमित्तोने आधीन छे. जेवुं निमित्त आवे तेवुं कार्य थाय. हवे आवा जीवो पण कार्य परथी -निमित्तथी थवानुं माननारा छे. तेओ वस्तुना परिणमननुं जेवुं स्वरूप छे तेवुं यथार्थ मानता नथी. तेमना ज्ञानमांथी पण वस्तु- आत्मतत्त्व छूटी गयुं छे अर्थात् द्रष्टिमां तेओए आत्मतत्त्वनो नाश कर्यो छे. तेओ एकांतना झेरने पीने मूर्च्छित थई मूढपणे वर्तता संसारमां परिभ्रमे छे.

हवे कहे छे- ‘तेमने (अज्ञानी जीवोने) स्याद्वाद ज्ञानमात्र आत्मतत्त्वनुं अनेकान्तस्वरूपपणुं प्रगट करे छे-समजावे छे. जो पोताना आत्मा तरफ देखी अनुभव करी जोवामां आवे तो (स्याद्वादना उपदेश अनुसार) ज्ञानमात्र आत्मवस्तु आपोआप अनेक धर्मोवाळी प्रत्यक्ष अनुभवगोचर थाय छे.’

ज्ञानमात्र आत्मवस्तु कहेतां तेमां ज्ञान एक ज गुण छे एम नहि, एनी साथे दर्शन, सुख, वीर्य, अस्तित्व, नास्तित्व, वस्तुत्व आदि अनंत धर्मो होवानुं सिद्ध थाय छे. केवी रीते? तो कहे छे- जो पोताना आत्मा तरफ देखी अनुभव करीने जोवामां आवे