अचेतन छे, केमके ते भाव चैतन्यनी जातिना नथी. अहाहा...! अंतरंगमां चैतन्य महापदार्थ जे छे ते तो पुण्य- पापथी रहित अनंत शक्तिओनुं संग्रहालय-गोदाम छे. अहा! ए अनंत शक्तिओमां प्रथम अहीं जीवना जीवनरूप जीवत्वशक्तिथी प्रारंभ करे छे.
शुं कहे छे? के अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत आनंद, अनंत वीर्य-ते रूप जे शक्तिरूप भावप्राण तेनुं धारण करवुं जेनुं लक्षण अर्थात् स्वरूप छे ते जीवत्वशक्ति छे. जीवना जीवनरूप जीवत्वशक्ति छे. आ जीव जीवे छे के नहि? जीवे छे ने! अनादिअनंत जीव जीवे छे. अहा! जेनाथी जीव अनादिअनंत जीव छे ते जीवत्वशक्ति छे. ‘जीवो चरित्तदंसणणाणठिदो’ -एम समयसार गाथा-रमां कह्युं ने? एमांथी आ जीवत्वशक्ति आचार्यदेवे काढी छे. जुओ, पहेलां आचार्यदेवे अनंत गुणोथी अभेद एक ज्ञानमात्र आत्मानुं लक्ष कराव्युं, ने हवे ते अभेद आत्माना लक्षपूर्वक आ शक्तिओनी ओळखाण करावे छे.
अरे भाई! तारा घरमां शुं शुं भर्युं छे तेनी तने खबर नथी. तारा वैभवनी तने खबर नथी. तारा घरमां तो अनंतशक्तिओना वैभवथी भरेलो भंडार भर्यो छे. तेमां एक जीवत्व शक्ति छे. केवी छे ते शक्ति? तो कहे छे- ‘आत्मद्रव्यने कारणभूत एवा चैतन्यमात्र भावनु धारण जेनुं लक्षण अर्थात् स्वरूप छे एवी जीवत्वशक्ति छे. अहीं चैतन्यमात्र भावने आत्मद्रव्यनुं कारण कह्युं; केम कह्युं? केमके चैतन्यभाव वडे आत्मानी सिद्धि थाय छे. जो चैतन्यमात्र भाव न होय तो जीव ज सिद्ध न थाय, चैतन्यभाव विना आत्मद्रव्य ज न होई शके. माटे चैतन्यमात्र भावने आत्मद्रव्यनुं कारण कह्युं छे. अहा! आवा चैतन्यमात्र भावरूप भावप्राणने धारण करी राखवा ते जीवत्वशक्तिनुं स्वरूप छे. अहा! आवी जीवत्व शक्ति जाणी, अनंत शक्तिनो धरनारो शक्तिवान जे एक ज्ञानमात्र आत्मा छे तेना उपर द्रष्टि करवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे, सम्यग्ज्ञान थाय छे, ने जीवत्व सहित अनंती शक्तिओना क्रमवर्ती निर्मळ परिणमननी दशा प्रगट थाय छे. आवी वात! समजाणुं कांई...?
प्रश्नः– तो शक्तिनुं लक्ष करे तो सम्यग्दर्शन थाय के नहि? उत्तरः– न थाय; केमके शक्ति तो एक गुण छे. जेने गुणभेदनी द्रष्टि छे तेने तो विकल्प-राग ज थाय छे. गुणभेद के गुण-गुणीभेदमां जे अटके छे तेने सम्यग्दर्शन थतुं नथी, केमके ते रागमां-विकल्पमां ज अटकयो छे.
अरे भाई! तने तारा शाश्वत शुद्ध चैतन्यप्राणमय त्रिकाळी जीवननी खबर न मळे तो तुं साचुं जीवन केवी रीते जीवीश! आहार-पाणी के शरीरादि जड प्राणोथी तुं जीववानुं मान पण ते कांई साचुं जीवन नथी. अहा! शरीर पोते ज जड मृतक-कलेवर छे तो ते वडे तुं केम जीवे? भाई! पोताना शुद्ध चैतन्यप्राणो वडे ज तुं त्रिकाळ जीवे, अने शुद्धचैतन्यमात्रवस्तुना आश्रये सिद्धपदने साधीने सादि-अनंत पूरण आनंदमय जीवन जीवे ए ज जीवनुं साचुं जीवन छे. अहाहा...! जो ने, आ सिद्ध भगवंतो शरीरादि विना ज पोताना चैतन्यप्राणथी परम सुखमय जीवन जीवी रह्या छे. भाई! तारे साचुं जीवन जीववुं होय तो, आ जीवत्वशक्ति जेमां ऊछळी रही छे एवा तारा ज्ञानमात्र आत्मामां द्रष्टि कर अने त्यां ज लीन था. स्तुतिमां आवे छे ने के-
जीवी जाण्युं नेमनाथे जीवन...
अहाहा...! भगवान केवळी जे पूरण आनंदमय, पूरण वीतरागतामय जीवन जीवे छे ते खरुं-साचुं जीवन छे. बाकी अज्ञानमय-रागादिमय जीवन जीवे तेने जीवनुं जीवन कोण कहे? ए तो बापु! भयंकर भावमरण छे. श्रीमद्मां आवे छे ने के-
बापु देहथी ने रागथी जीवन माने तेने तो साचुं जीवन जीवतां ज नथी आवडतुं; तेने तो निरंतर भावमरण ज थया करे छे. समजाणुं कांई...?
तो जीवने दश प्राण कह्या छे ने? हा, संसारी जीवने दश प्राण कह्या छे. तेमां पांच इन्द्रिय, मन-वचन-काया, आयुष्य अने श्वासोच्छवास- एवा जे दश द्रव्यप्राण छे ते जडनी दशा छे, जडरूप छे. जीवना स्वरूपमां तेनो सर्वथा अभाव छे. तेने जीवना प्राण कहीए ते असद्भूत व्यवहार छे. तथा क्षयोपशमरूप भावेन्द्रियो, मन-वचन-कायाना निमित्ते कंपन दशा, देहमां रहेवानी योग्यतारूप आयुष्य अने श्वासोच्छवास थवानी पर्यायनी योग्यता-एम जे दश अशुद्ध भावप्राण संसारीओने होय