Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ छे ते अशुद्ध निश्चयनयथी छे. शुद्ध निश्चयनयथी ते कांई जीवना वास्तविक परमार्थ जीवनरूप नथी; केमके ते अशुद्ध भावप्राण शुद्ध चैतन्यना स्वरूपभूत नथी. जुओ, एना (अशुद्ध भावप्राण) विना ज सिद्ध भगवंतो सादि-अनंत परम सुखमय पारमार्थिक जीवन जीवे छे. सिद्धोने सर्वथा दशप्राणरूप जीवत्व नथी. द्रव्य-गुणमां तो पहेलेथी ज (संसार दशाथी ज) दशप्राण न हता, हवे (सिद्धदशामां) पर्यायमां पण तेनो अभाव थयो छे. समजाणुं कांई...? दश प्रकारना व्यवहार प्राणोथी जीव जीवे छे-एम कहेवुं ते उपचारनुं कथन छे. अहीं ए वात नथी. अहीं तो जीव सदाय पोताना चैतन्यभावप्राणथी ज जीवे छे एवी तेनी जीवत्वशक्ति छे-एम वात छे. अहा! आवा चैतन्यमात्र भावरूप आत्माने जे लक्षमां ले तेने अनंतगुण एकसाथे ज निर्मळ परिणमी जाय छे, तेने शुद्ध जीवत्वनी क्रमवर्ती दशा प्रगट थाय छे, अर्थात् साचा पवित्र जीवननो क्रम तेने शरू थाय छे. आवी वात छे.

ज्ञानप्राण, दर्शनप्राण, आनंदप्राण, वीर्यप्राण-एम आ शक्तिरूप चैतन्यभावप्राण छे. अहा! आ चैतन्यभावप्राण वडे जीव त्रिकाळ जीवे छे. आत्मद्रव्य छे तेना जीवनने कारणभूत आ चैतन्यभावप्राण छे. अहा! आवा चैतन्यभावप्राणने धारी राखवा ते जीवत्वशक्तिनुं स्वरूप छे. परंतु देहने, इन्द्रियने, आयुने के रागने धारी राखवा ते जीवत्वशक्तिनुं स्वरूप नथी. अरे, आत्मानी अनंत शक्तिओमां, आ देहादि जड प्राणोने धारण करे एवी कोई शक्ति नथी. तेथी जडप्राणोथी हुं जीवुं छुं एम माने ए तो मिथ्या छे. एवुं जीवन पण मिथ्या छे. देहादि जडना लक्षे परिणमे ए जीवन मिथ्या छे, दुर्दशामय छे.

अरे! आवी वात एणे कदी सांभळी नथी. पण अरेरे! आ जिंदगी चाली जाय छे भाई! आ देह तो फू थई छूटी जशे, अने ८४ना अवतारमां जीव कयांय चाल्यो जशे. भाई! तारी दया करनार त्यां कोई नहि होय. अने जगतमां तारी चैतन्यवस्तु सिवाय तने कोण शरण छे? माटे ज्ञानमात्र आत्मा चैतन्य-परमेश्वर तुं पोते ज पोतानुं शरण छो एम जाणी तेमां एकाग्र था, ने त्यां ज लीन था; तने जीवनुं साचुं आनंदनुं जीवन प्राप्त थशे.

अहा! त्रणलोकना नाथ भगवान जिनेश्वरदेव आत्मानुं स्वरूप एवुं फरमावे छे के-आत्मामां अनंत शक्तिओ-गुणो छे. ते एक शक्ति बीजी शक्तिरूपे थती नथी; परंतु दरेक शक्तिनुं रूप बीजी अनंत शक्तिओमां होय छे. जेमके -आत्मामां सत्ता-अस्ति एक गुण छे. ते अस्ति गुण बीजा अनंत गुणमां जतो नथी, पण अस्ति गुणनुं रूप बीजा अनंत गुणमां होय छे. ज्ञान छे, दर्शन छे, वीर्य छे-एम अनंत गुणनुं छे-पणुं छे ते अस्तित्वगुणनुं रूप छे; अस्तित्वगुण नहि, पण अस्तित्वगुणनुं रूप बीजा अनंतगुणमां छे. आम दरेक शक्तिमां बीजी अनंत शक्तिओ नथी, परंतु तेमनुं रूप होय छे. एवी रीते जीवत्व शक्तिनुं रूप बीजी अनंत शक्तिओमां होय छे जे वडे अनंत शक्तिओ जीवंत छे जीवंत ज्ञान जीवंत दर्शन, जीवंत वीर्य-अहाहा...! एवी अनंत शक्ति जेनुं जीवन छे एवो भगवान आत्मा छे. भाई! तने खबर नथी पण अंतरंगमां तुं द्रष्टि-नजर करे तो तुं न्याल थई जाय एवी अनंत चैतन्यसंपदाथी भरेली तारी चीज छे. अहीं जीवत्वशक्ति कहीने आचार्य भगवान तारुं वास्तविक जीवन बतावे छे. अमने तो संवत १९७८मां आ सयमसार हाथ आव्युं त्यारे सहज एवा उद्गार नीकळेला के-अहो! अशरीरी (- सिद्ध) थवा माटेनुं आ शास्त्र-परमागम छे.

भाई! आ शरीर, मन, वाणी, इन्द्रिय, बैरां-छोकरां ने पैसा-ए बधुं तो धूळधाणी छे, मसाणना भभका छे. जेम मसाणमां हाडकां पडेला होय छे तेमां फोस्फरसने लईने चमक-चमक थया करे; तेम आ जगतमां आत्मा सिवाय बहार जे भभका देखाय छे ते फोस्फरसनी चमक जेवा छे. लाखोना बंगला होय, करोडोनी संपत्ति होय-ए बधुं जड माटी-धूळ छे; तेनी मूढ अज्ञानी जीवो किंमत-महिमा करे छे. अहा! अंदर अनंत अनंत चैतन्यलक्ष्मीनो भंडार प्रभु पोते छे तेनो महिमा अने प्रतीति जेने आवतां नथी ते बधा जीवो दुःखी छे. बहारमां पैसावाळा होय तो य दुःखी छे. ए पैसावाळाओने लोको भले शेठ कहे, पण तेओ बधा हेठ छे. अज्ञानीओने धूळनी-पैसानी किंमत छे तेथी तेओ पैसावाळाने शेठ कहे छे, पण खरेखर तेओ शेठ नथी. (हेठ छे). अंदर चैतन्यलक्ष्मीस्वरूप पोते छे तेनां प्रतीति ने अनुभव करे ते वास्तवमां शेठ-श्रेष्ठ छे; लोकमां तेनुं जीवन श्रेष्ठ छे.

भाई! आ तारा घरनी वात एक वार सांभळ तो खरो. अरे प्रभु! अनंत चैतन्यसंपदाथी भरेली तारी चीज- तेने कदी नजरमां लीधी नहि, अने इन्द्रिय अने इन्द्रियना विषयोने ज लक्षमां लीधा! तने शुं थयुं प्रभु! भगवाननी ओम्ध्वनिमां तो आ आव्युं के-द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय अने इन्द्रियना विषयो-ए बधानुं लक्ष छोडी, ज्ञानस्वभाव वडे जे अधिक-भिन्न छे एवा भगवान आत्मानो अनुभव करी जेणे इन्द्रियोने जीती छे तेनुं नाम सम्यग्द्रष्टि छे,